I. प्रत्यक्ष भोंसला शासन : 1758-87 ई०
बिम्बाजी भोंसला : 1758-87 ई०
छत्तीसगढ़ में प्रत्यक्ष शासन स्थापित करने के पश्चात् नागपुर के भोंसला शासक रघुजी ने राजकुमार बिम्बाजी भोंसला को यहाँ का शासक नियुक्त किया।
बिम्बाजी भोंसला ने रतनपुर के प्राचीन राजमहल में प्रवेश कर छत्तीसगढ़ के शासन की बागडोर संभाल ली। यद्यपि वह नागपुर राजा के सहायक के रूप में यहाँ शासन के लिए नियुक्त किया गया था तथापि उसने परिस्थितियों का लाभ उठाकर अपने को यहाँ का स्वतंत्र शासक बना लिया। वे राजस्व का कोई भी हिस्सा नागपुर नहीं भेजते थे। रतनपुर में उनका पृथक् दरबार, मंत्री तथा सेना थी।
बिम्बाजी में सैनिक गुणों का अभाव था, अतः उन्होंने राज्य विस्तार का कोई प्रयास नहीं किया। उनकी रुचि रचनात्मक कार्यों में थी।
बिम्बाजी भोंसले द्वारा किये गए प्रमुख कार्य
1. बिम्बाजी ने रतनपुर और रायपुर का प्रशासनिक एकीकरण कर उसे छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान की।
2. बिम्बाजी ने नांदगाँव और खुज्जी नामक दो नयी जमींदारियों का निर्माण किया।
3. बिम्बाजी ने रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की।
4. बिम्बाजी ने राजस्व संबंधी लेखा तैयार कराने का कार्य किया।
5. बिम्बाजी ने कुछ नये कर भी लगाए।
6. बिम्बाजी ने यहाँ विजयादशमी पर्व पर स्वर्ण-पत्र देने की प्रथा आरंभ की।
7. बिम्बाजी ने यहाँ मराठी (भाषा), मोड़ी (लिपि) और उर्दू (भाषा) को प्रचलित किया।
8. बिम्बाजी ने रतनपुर की रामटेकड़ी पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी विद्यमान है।
9. बिम्बाजी ने रायपुर के प्रसिद्ध दूधाधारी मंदिर का पुनः निर्माण करवाया।
इस प्रकार, बिम्बाजीने छत्तीसगढ़ की प्रजा को एक नई शासन पद्धति दी। परिणाम यह हुआ कि इस नवीन शासन पद्धति के कारण छत्तीसगढ़ की राजनीति में जो परिवर्तन हुआ उसे धोत्रीय जनता ने बिना किसी विरोध के चुपचाप स्वीकार कर लिया और उस नवीन शासक को अपने शुभचिंतक के रूप में देखने लगी ।
जब 1787 ई० में बिम्बाजी की मृत्यु हुई तब रतनपुर की जनता काफी दुःखी हुई। बिम्बाजी की तीन पत्नियाँ थी : आनन्दी बाई, उमाबाई और रमाबाई। उमा बाई बिम्बाजी के साथ सती हुई थी।
छत्तीसगढ़ की यात्रा पर आये यूरोपीय यात्री कोलबुक ने अपने यात्रा-विवरण में लिखा है कि बिम्बाजी की मृत्यु से छत्तीसगढ़ को सदमा पहुँचा क्योंकि उनका शासन लोककल्याणकारी था।
वह जनता का शुभचिंतक व उनके प्रति सहानुभूति रखनेवाला था। छत्तीसगढ़ के प्रथम इतिहासकार बाबू रेवाराम कायस्थ :1850-1930 (‘तवारीख हैहयवंशी राजाओं की’) एवं शिवदत्त शास्त्री (‘इतिहास समुच्चय’) दोनों ने बिम्बाजी के शासन की प्रशंसा की है।