Suba Shasan In Chhattisgarh
II. सूबा शासन (सूबा सरकार) : 1787-1818 ई०
व्यंकोजी भोंसला : 1787-1811 ई०
बिम्बाजी के मरणोपरांत भोंसला राजकुमार व्यंकोजी भोंसला को छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ। उसने छत्तीसगढ़ के शासन के संबंध में सर्वथा एक नवीन नीति अपनाई। उसने रतनपुर में रहकर प्रत्यक्ष शासन चलाने के बजाय नागपुर से ही यहाँ का शासन चलाने का निर्णय लिया।
परिणामतः अब नागपुर ही छत्तीसगढ़ की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया और रतनपुर का राजनैतिक वैभव धूमिल होने लगा। व्यंकोजी भोंसला ने छत्तीसगढ़ के शासन को सूबेदार के माध्यम से चलाने का निश्चय किया।
यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार को नियुक्त करने की परम्परा का सूत्रपात हुआ। भोंसला राजकुमार के प्रतिनिधि के रूप में सूबेदार अपने मुख्यालय रतनपुर से छत्तीसगढ़ का शासन संचालित करने लगा। छत्तीसगढ़ में स्थापित यह नवीन व्यवस्था मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी।
शासन के इस नवीन व्यवस्था को ‘सूबा शासन’ (‘सूबा सरकार’) की संज्ञा प्रदान की गई। व्यंकोजी भोंसला नागपुर के सत्ता संघर्ष में लिप्त रहे और अपने 24 साल लंबे कार्यकाल में मात्र तीन बार ही छत्तीसगढ़ के दौरे पर आए। छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोंसला की वर्ष 1811 ई० में बनारस में मृत्यु हो गई।
अप्पा साहब : 1811-18 ई० या वर्ष 1811 ई० में व्यंकोजी भोंसला के मरणोपरांत अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नये शासक नियुक्त किए गए। अपनी नियुक्ति के उपरांत अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालीन सूबेदार बीकाजी गोपाल से बहुत बड़ी राशि की मांग की।
परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने उनकी मांग पूरी करने में अपनी असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ में एक के बाद दूसरे सूबेदार की नियुक्ति की गई।
अतः अल्पावधि में ही यहाँ कई सूबेदारों ने शासन किया। अल्पावधि में कई सूबेदारों की नियुक्ति भोंसला शासन की अस्थिरता का परिचायक थी। ये सारी घटनाएं यह भी बताती है कि भोंसले शासक छत्तीसगढ़ से मनमाना धन प्राप्त करना चाहते थे। उन्हें यहाँ के प्रशासन से या जनता की खुशहाली से कोई मतलब नहीं था।
सूबा शासन के दौरान छत्तीसगढ़ के लिए नियुक्त सूबेदार
सूबेदार – प्रमुख घटनाएं
1. महीपतराव दिनकर 1787-90 ई० – छत्तीसगढ़ का प्रथम सूबेदार, शासन की सारी शक्तियाँ बिम्बाजी की विधवा आनंदी बाई के हाथ में, यूरोपीय यात्री फारेस्टर का छत्तीसगढ़ आगमन ।
2. विठ्ठल दिनकर1790-96 ई० -छत्तीसगढ़ का दूसरा सूबेदार, छत्तीसगढ़ में ‘परगना पद्धति’ का जन्मदाता, यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट का छत्तीसगढ़ आगमन
3. भवानी कालू 1796-97 ई. – छत्तीसगढ़ का तीसरा सूबेदार
4. केशव गोविन्द 1797-1808 ई. – सर्वाधिक अवधि तक रहा छत्तीसगढ़ का सूबेदार, यूरोपीय यात्री कोलबुक का छत्तीसगढ़ आगमन
5. विंकोजी पिडी दीरो कल्लकर 1808-09 ई. – अल्पावधि के लिए बने छत्तीसगढ़ के सूबेदार
6. बीकाजी गोपाल 1809-17 ई.- पिण्डारियों का उपद्रव, छत्तीसगढ़ के वायसराय व्यंकोजी भोसला की मृत्यु (1811 ई.), नये वायसराय अप्पा साहब द्वारा बीकाजी गोपाल से अधिक राशि की मांग, बीकाजी गोपाल द्वारा असमर्थता प्रकट करने पर उसे सूबेदार पद से हटाना ।
7. सखाराम हरि , 1817 ई. – मात्र तीन महीने तक रहा छत्तीसगढ़ का सूबेदारअसंतुष्ट किसानों द्वारा गोली का शिकार बनने वाला सूबेदार
सीताराम टॉटिया 1817 ई. मात्र छः महीने तक रहा छत्तीसगढ़ का सूबेदार
8. यादवराव दिवाकर 1817-18 ई – छत्तीसगढ़ का अंतिम सूबेदार. मराठा प्रशासन
1. छत्तीसगढ़ के शासन के लिए नियुक्त होने वाले सर्वोच्च अधिकारी सूबेदारों का पद न तो स्थायी था और न ही वंशानुगत । उसकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा (इजारादारी व्यवस्था) के अनुसार होती थी।
जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था, उसे सूबेदार के पद पर नियुक्त कर दिया जाता था।
2. परगना पद्धति* : द्वितीय मराठा सूबेदार विठ्ठल दिनकर ने राजस्व पद्धति में नया परिवर्तन प्रस्तुत किया। यह परिवर्तन ‘परगना पद्धति के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मराठों ने कल्चुरि शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों व दाऊओं को हटाकर पुराने गढ़ों की इकाई को समाप्त कर दिया। इसके स्थान पर उन्होने इस क्षेत्र को नये सिरे से विभिन्न परगनों में विभाजित किया। मराठों द्वारा गठित परगनों की संख्या 27 थी । यह नवीन व्यवस्था नागपुर में प्रचलित पेशवा शासन व्यवस्था के अनुरूप थी।
3. मराठा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के सम्पूर्ण शासन को दो भागों में विभाजित किया गया था-खालसा क्षेत्र व जमींदारी क्षेत्र । खालसा क्षेत्र पर मराठों ने अपना प्रत्यक्ष शासन रखा, किन्तु जमींदारी क्षेत्र को उन्होंने विभिन्न जमींदारों के अधिकार में कर दिया।
ये जमींदार अपने-अपने क्षेत्र में शासन के लिए स्वतंत्र थे, परन्तु मराठों द्वारा निर्धारित राशि उन्हें नियमित रूप से चुकानी पड़ती थी।
4. छत्तीसगढ़ में फसली वर्ष का आरंभ प्रति वर्ष जून में होता था।
5. मराठों ने राजस्व के क्षेत्र में पटेलों की नियुक्ति का प्रावधान किया । ये पटेल
का एक या एक से अधिक गाँवों के राजस्व की देख-रेख करते थे। * परगना पद्धति का काल-1790-1818 ई.
6. मराठों ने छत्तीसगढ़ में भूमि व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई प्रथा ‘तालुकदारी प्रथा’
का आरंभ किया। इस प्रथा में भूमि संबंधी पट्टों का प्रयोग किया जाता था। इस प्रथा के अनुसार एक निश्चित अवधि के लिए निर्धारित भूक्षेत्र को ठेकेदारी प्रथा के अनुसार किसी व्यक्ति विशेष के आधिकार में कर दिया जाता था। निर्धारित अवधि की समाप्ति के बाद या तो उस ठेके को समाप्त कर दिया जाता था या भविष्य के लिए उसका नवीकरण कर दिया जाता था। मराठों ने अपने शासन काल में दो तालुका-तरेंगा और लोरमी—बनाये । तरेंगा के तालुकदार के अधीन 45 गाँव तथा लोरमी के तालुकदार के अधीन 103 गाँव रखे गए थे।
7. मराठा शासन में राजस्व से प्राप्त होने वाली आय को दो भागों में विभाजित किया जाता था— ‘जमा राजस्व’ व ‘सेवाई। भूमि की उपज पर लगने वाला कर जमा राजस्व कहलाता था। विभिन्न कारणों को आधार बनाकर भूमि पर लगनेवाला अतिरिक्त कर सेवाई कहलाता था। सेवाई का एक उदाहरण—विभिन्न त्योहारों के अवसर पर भेंट के रूप में जनता पर लगनेवाला कर।
8. मराठा प्रशासन के प्रमुख अधिकारी
सूबेदार : नागपुर के भोंसले राजकुमार के प्रतिनिधि के रूप में सूबा शासन का सर्वप्रमुख अधिकारी; सूबे के दीवानी, फौजदारी, सैनिक, असैनिक व माल विभाग का प्रमुख
कमाविसदार : परगना का प्रमुख अधिकारी
फड़नवीस : परगने की आय-व्यय का हिसाब रखने वाला प्रमुख अधिकारी
बडकर : परगने की सामान्य स्थिति, फसल की दशा एवं अन्य मामलों की सूचना परगना प्रधान कमाविसदार को भेजनेवाला
गोंटिया -: गाँव का प्रमुख (गोंटिया का पद मराठा शासन के पहले से विद्यमान था।)
पटेल : गाँव में भूमिकर के निर्धारण एवं उसकी वसूली में सरकार का सहयोग करने वाला
9. मराठों ने वस्तुओं के क्रय-विक्रय में कौड़ियों के स्थान पर नागपुर राज्य में प्रचलित रुपये का प्रचलन छत्तीसगढ़ में किया।
10. सूबा शासन के दौरान राजभाषा मराठी और लिपि मोड़ी का प्रचलन था।