Chhattisgarh me maratha shasan
cg me punh bhosla sashan
पुनः भोसला शासन : 1830-54 ई०
रघुजी III : 6 जून, 1830-11 दिसम्बर, 1853 ई०
रघुजी भोंसले तृतीय का काल ( 1830-1854):- 1830 में रघुजी भोंसले तृतीय को छत्तीसगढ़ का शासन
- जिलेदारों के माध्यम से छत्तीसगढ़ का शासन, प्रथम जिलेटा. कृष्णराव अप्पा तथा अंतिम जिलेदार गोपालराव था।
- रघुजी तृतीय के काल में धमधा (1830), बरगढ़ (1833), तारापुर (1842-54), माड़िया (1842-63) आदि में विद्रोह
- रघुजी तृतीय द्वारा 1831 में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया।
- 1854 में हड़प नीति द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य में विलय
- टकोली : मराठों द्वारा निर्धारित वार्षिक कर
- कलाली : मादक द्रव्यों पर लगने वाला कर
- सायर : आयात-निर्यात कर
- पण्डरी गैर कृषक कर
- सेवई : अन्य अपराधों पर
अंग्रेजों और रघुजी III के बीच 13 दिसम्बर, 1826 ई० को हुई संधि के अनुसार केवल नागपुर जिले के क्षेत्र (बतौर प्रयोग) रघुजी III को शासन के लिए सौंपा गया था जबकि तीन साल बाद 27 दिसम्बर, 1829 को हुई संधि के अनुसार उनके राज्य का शेष भाग भी भोंसला शासक के सुर्पद किया जाना था।
1829 की संधि को 15 जनवरी, 1830 ई० को गवर्नर जनरल की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस संधि ने भोंसला शासक रघुजी ।।। को शासन के क्षेत्र में रेसीडेन्ट के प्रभाव से मुक्त कर दिया।
नागपुर स्थित ब्रिटिश रेसीडेन्ट विल्डर ने छत्तीसगढ़ के ब्रिटिश अधीक्षक कैप्टेन काफर्ड को शासन के हस्तांतरण हेतु एक स्पष्ट निर्देश भेजा।
6 जून, 1830 ई० को छत्तीसगढ़ का शासन नागपुर के शासक रघुजी III को हस्तांतरित कर दिया गया और उसी दिन से अधीक्षक ने प्रशासकीय मामलों में हस्तक्षेप करना छोड़ दिया। नागपुर के शासक रघुजी III से यह निवेदन किया गया कि वे छत्तीसगढ़ के शासन
नियुक्त जिलेदार जी के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति करे इसके अनुसार शासन के लिए होने वाला मराठा अधिकारी ‘जिलेदार’ कहलाया। छत्तीसगढ़ का प्रथमजिलेदार कृष्णाराव अप्पा था।
इसने छत्तीसगढ़ के अंतिम ब्रिटिश -अधीक्षक क्राफर्ड से शासन भार ग्रहण किया। अंग्रेजों द्वारा छत्तीसगढ की राजधानी के रूप में स्थापित रायपुर जिलेदार का मुख्यालय बना।
रघुजी III के शासन काल की प्रमुख घटनाएँ
1. मुल्तानी ठगों-लुटेरों का दमन : छत्तीसगढ़ में मुल्तानी ठगों-लुटेरों के गिरोह अनेक वर्षों से सक्रिय थे। इसके मूल में कारण यह था कि इस समय तक छत्तीसगढ़ में मुल्तानी लोग आकर बस गए थे और इनका मुख्य धंधा ठगी और लूटमार करना था। छत्तीसगढ़ में मुल्तानियों के गिरोह के मुखिया सलावत, उदाहुस्न और प्यारे जमादार थे।
इनके अलावे कुछ अन्य नेता भी थे, जैसे हीरा नायक, उमर खाँ और दिलावर खाँ। अंग्रेजों ने मुल्तानी ठगों-लुटेरों के गिरोह को नष्ट करने का प्रयास किया। किन्तु इस कार्य में भोंसले शासक रघुजी III अपना प्रत्यक्ष सहयोग देने में असमर्थ रहे।
इसलिए अंग्रेजों ने इस दिशा में स्वतंत्र रूप से सक्रिय कदम उठाया। बाद में उन्हें भोंसला शासक का भी सहयोग प्राप्त हुआ। इस कार्य के लिए कैप्टेन स्लीमन को सामान्य अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया।
कैप्टेन स्लीमन ने ठगों और लुटेरों का सफलतापूर्वक दमन किया। इस प्रकार छत्तीसगढ़ की जनता ने ठगों और लुटेरों के आतंक से मुक्ति पायी।।
2. नर-बलि प्रथा का अंत : अंग्रेजों को इस बात की सूचना मिली कि छत्तीसगढ़ के कुछ जमींदारी क्षेत्रों, जैसे—बस्तर और करौंद के जमींदारी क्षेत्र के लोगों विशेषतः जनजातीय/आदिवासी लोगों में नर-बलि की प्रथा प्रचलित है।
अंग्रेजों ने इसे अमानवीय समझकर समाप्त करने का निश्चय किया। कर्नल कैम्पबेल को नर-बलि प्रथा की समाप्ति हेतु ब्रिटिश प्रतिनिधि के रूप में तैनात किया गया। ____
3. सती प्रथा का अंत : छत्तीसगढ़ में सती प्रथा भी प्रचलित थी। अंग्रेज इस प्रथा को क्रूर और अमानवीय मानते थे। इसलिए ब्रिटिश रेसीडेन्ट ने नागपुर के शासक रघुजी III से यह आग्रह किया कि इस प्रथा के उन्मूलन हेतु वे आवश्यक कार्यवाही करें।
रघुजी III ने इस प्रथा के उन्मूलन हेतु राज्य में 1831 ई० में एक आदेश पारित किया। अंग्रेजों ने 4 सितम्बर, 1829 ई० को इस प्रथा के उन्मूलन हेतु पहले से ही बंगाल-बिहार में आदेश प्रसारित कर दिया था।
4. धमधा के गोंड राजा का विद्रोह : रघुजी III के शासन काल में धमधा परगना में एक पुजारी के नेतृत्व में गोंडों ने गुप्त रूप से शासन के विरुद्ध विद्रोह करना चाहा, परन्तु किसी तरह इसकी सूचना जिलेदार को मिल गई। जिलेदार ने अपने कुछ सैनिकों को धमधा भेजा। फलतः गोंडों का यह उपद्रव सहज ही शांत कर दिया गया ।
4. मराठी और हिन्दुस्तानी को राजभाषा का दर्जा : रघुजी III के शासन काल के पूर्व प्रशासनिक कार्यों में फारसी भाषा का प्रयोग होता था। रघुजी III ने इसे समाप्त कर मराठी और हिन्दुस्तानी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया ।
रघुजी III ने अपने आरंभिक वर्षों में शासन कार्य में सक्रिय रुचि ली। किन्तु बाद के वर्षों में वे सुन्दरी और सुरा के चक्कर में पड़ गए। जानी नामक वेश्या के प्रति वे अधिक आकृष्ट हो गए और उन्हें शराब पीने की बुरी लत पड़ गयी। इसका उनके स्वास्थ य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और वे अस्वस्थ रहने लगे।
11 दिसम्बर, 1853 ई० को एक माह की लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। वे निःसंतान थे। अतएव गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने व्यपगत सिद्धांत/जब्ती का सिद्धांत (Doctrine of Lapse) के तहत उनका राज्य हड़प लिया।
मार्च, 1854 ई० में नागपुर राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया। नागपुर राज्य के ब्रिटिश साम्राज्य में विलय होने के कारण स्वतः नागपुर के भोंसला शासक के अधीनस्थ क्षेत्र छत्तीसगढ़ का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हो गया।