CG Temple Gk 2021
- भोरमदेव मंदिर : सुरम्य पहाड़ियों के बीच सुन्दर सरोवर के किनारे स्थित यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर खजुराहो एवं कोणार्क मंदिर की कला के संगम है। यह मंदिर शिलाओं को तराशकर नागर शैली में निर्मित है। इस मंदिर का नामकरण गोड़ देवता भोरमदेव के नाम पर हुआ है। यह मंदिर 5 फीट ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित है। स्वरूप की दृष्टि से इस मंदिर के तीन हिस्से हैं-मण्डप, अन्तराल एवं गर्भगृह । ये तीनों क्रमशः एक के बाद एक बने हुए हैं और ये तीनों समग्र रूप में एक अभिन्न इकाई दिखते हैं।
इसके तीन ओर उत्तर, दक्षिण एवं पूर्व की ओर तीन प्रवेश द्वार हैं जहाँ सीढ़ियों के माध्यम से पर्यटक मंडप में एवं वहां से अन्तराल में प्रवेश करते हैं। मंडप आकार में 60 फीट लम्बा एवं 40 फीट चौड़ा है। इसके मध्य में 4 स्तम्भ एवं 12 पार्श्व स्तम्भ हैं जो भित्तियों से सटे हुए हैं। गर्भगृह नीचे है तथा इसमें प्रवेश करने के लिए अंतराल से सीढ़ियों से नीचे उतरकर जाना होता है। गर्भगृह 9 फीट वर्गाकार प्रदक्षिणा पथ-विहीन है।
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इसमें शिवलिंग स्थापित है। यहां उत्तर दिशा की ओर एक प्रणालिका है जिसके माध्यम से भगवान शिव पर अर्पित जल बाहर निकलता है। गर्भगृह से लेकर बाहरी भाग तक सम्पूर्ण मंदिर विभिन्न प्रकार के चित्रों, बेलबूटों से अलंकृत है। इस मंदिर में चित्रित एवं उपलब्ध तौर पर मूर्तियों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रथम वर्ग में देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ आती है, जिनका निर्माण पूजा अर्चना के लिए किया गया है। ये मूर्तियाँ मंदिर के चारों ओर उकेर कर बनायी गई है।
द्वितीय वर्ग के अन्तर्गत परिवार के पार्श्व देवता आते हैं जो अधिकांशतः बाह्य दीवारों एवं आलों में बने हैं। तृतीय वर्ग के अंतर्गत मिथुन मूर्तियाँ आती हैं। इस पुरातत्वीय महत्व के मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में 1089 ई. में 6ठे नागवंशी शासक श्री गोपाल देव द्वारा कराया गया । यह मंदिर शिल्पकला सौन्दर्य का अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर न सिर्फ छत्तीसगढ़ का बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष का गौरव है।
भारतीय कला एवं संस्कृति की उत्कृष्टता का यह एक प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस मंदिर के सामने एक अद्भुत तालाब है। किंवदन्ती है कि प्राचीन समय में इस तालाब में एक घाट पर कुछ बर्तन तैरते थे। राहगीर इन बर्तनों में अपना भोजन बनाकर इन्हें पुनः तालाब में छोड़ देते थे, किन्तु एक समय किसी राहगीर की नियत खराब हो गई और उसने एक बर्तन चोरी कर ली। तब से घाट में बर्तन तैरते हुए दिखना बन्द हो गया। इस तालाब के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि इसके बीचों-बीच एक मंदिर है, जिसका शीर्ष भाग कभी नहीं दिखायी देता। यदि यह दिख जाए तो अनिष्ट होता है। ऐसा भी यहाँ के लोगों का मानना है कि इस तालब में एक पारस पत्थर भी है।
भोरमदेव मंदिर ‘छत्तीसगढ़ के खुजराहो’ के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ महाशिवरात्रि एवं चैत्र सुदी तेरस के अवसर पर वर्ष में दो बार मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक पहुँचते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष भोरमदेव महोत्सव का भव्य आयोजन होता है।
- माँ दन्तेश्वरी का मंदिर : यह मंदिर दन्तेवाड़ा में स्थित है। यह मंदिर इस क्षेत्र का सर्वाधिक पूजनीय स्थल माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण रानी भाग्येश्वरी देवी ने कराया था। यह एक अद्भुत मंदिर है। मंदिर के सामने का भाग लकड़ी एवं लकड़ी की जालीनुमा दीवारों से निर्मित है। मंदिर का गर्भगृह एवं इसका ऊपरी हिस्सा पत्थर द्वारा निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में माँ दन्तेश्वरी देवी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के द्वार पर मानवाकार गरूड़-स्तम्भ है। इसके अलावे नागवंशी शासकों के शिलालेख एवं विविध कालों की प्रतिमाएँ इस मंदिर में विद्यमान हैं। मुख्य मंदिर से लगा एक नवग्रह मंदिर है जहाँ नवग्रहों की प्रतिमाएँ विद्यमान है।
कार्तिक नवरात्रि के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो 9 दिनों तक चलता है। मंदिर के ज्योति कक्ष में हजारों की संख्या में भक्तजनों द्वारा ज्योतिकलश एवं दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। मंदिर में आने वाले भक्तजनों की मनोकामनाओं को माँ दन्तेश्वरी पूर्ण करती है। माँ दन्तेश्वरी देवी के दर्शनार्थियों की भीड़ वर्ष भर लगी रहती है। यहाँ दूर-दूर से भक्तजन अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं। इस मंदिर में प्रवेश हेतु कुछ नियम हैं। मंदिर में पैंट पहनकर एवं चमड़े का बेल्ट या चमड़े का बना कोई सामान लेकर जाना वर्जित है। पुरुष लोग धोती एवं महिलाएँ साड़ी पहनकर मंदिर के अंदर जा सकती है।
- लक्ष्मण मंदिर : इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी में महाकोशल नरेश महाशिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने कराया था। यह मंदिर महासमुन्द जिले के सिरपुर नामक स्थान में स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में शेषनाग युक्त लक्ष्मण जी की एक प्रस्तर की प्रतिमा है। संभवतः इसी कारण इस मंदिर को लक्ष्मण मंदिर कहा जाता है। सम्पूर्ण मंदिर लाल ईंटों से निर्मित है। धरातल से लगभग 50 फीट ऊँचे इस मंदिर में ईटों से ही विभिन्न देवी-देवताओं, यक्ष, किन्नरों, पशुओं, पुष्पों आदि की सुन्दर आकृतियाँ बनायी गयी है। ईंटों पर किसी प्रकार का प्लास्तर नहीं होने के बावजूद भी वर्षों से सौन्दर्य को समेटे यह मंदिर वास्तुविदों तथा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर सिरपुर नगरी से 1 किमी. की दूरी पर स्थित है।
- राजीव लोचन मंदिर : यह मंदिर गरियाबंद जिले के राजिम (छत्तीसगढ़ का प्रयाग) में स्थित है। यह भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के पार्श्व भित्ति पर कल्चुरी संवत् 896 का शिलालेख है, जो इसकी प्राचीनता का प्रमाण है। यह मंदिर आयताकार है। मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर की बनी भगवान विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति प्रतिष्ठित है जिसके हाथ में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और पद्म है। यह मूर्ति भगवान श्री राजीव लोचन के नाम से पूजनीय है। यह मंदिर भारत का पांचवां धाम माना जाता है। माघ पूर्णिमा के दिन जगन्नाथपुरी के मंदिर का पट प्रातः 3 घंटे के लिए बन्द रहता है।
ऐसी मान्यता है कि इस समय भगवान जगदीश राजीव लोचन में विराजमान रहते हैं। इस मंदिर के चारों कोनों में वामन, वाराह, नरसिंह और बद्रीनाथ के मंदिर तथा मुख्य मंदिर के अनुषंगी देवालय है। भगवान राजीवलोचन की प्रतिमा के ठीक सामने मंदिर प्रांगण के दूसरी ओर राजा जगतपाल की प्रस्तर प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राजीवलोचन की प्रतिमा को नलवंशी सम्राट महाराज विलासतुंग ने राजिम नामक महिला से प्राप्त किया था और मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठित किया। राजिम नामक यह महिला जाति की तेलिन थी. एवं भगवान की बड़ी भक्त थी। इसके सती हो जाने के पश्चात एक देव गृह का निर्माण कराया गया जो तेलिन मंदिर के नाम से विख्यात है।
- महामाया मंदिर : यह मंदिर अति प्राचीन है। इसका निर्माण 11वीं सदी में राजा रत्नदेव ने कराया था। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवती महामाया की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा की विशिष्टता यह है कि भगवती महामाया के पीछे से एक दूसरी देवी झांकती हुई दिखाई देती है, जो सामान्यतः दिखायी नहीं पड़ती। यह मंदिर जाग्रत सिद्ध शक्ति पीठ है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला लगता है एवं हजारों की संख्या में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किये जाते हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु एवं भक्तजन यहाँ आकर देवी महामाया का दर्शन कर तृप्त होते हैं। नवरात्रि के समय यहाँ आने-वाले दर्शनार्थियों को महामाया ट्रस्ट की ओर से निःशल्क भोजन कराया जाता है।
- 6. बम्लेश्वरी देवी का मंदिर : यह मंदिर डोंगरगढ़ में स्थित है। इस मंदिर को निर्माण करने का श्रेय राजा वीरसेन को जाता है। यह मंदिर डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर पहाड़ी के शिखर पर गोलाकार रूप में सफेद संगमरमर से निर्मित है जिसका दरवाजा चाँदी से बना है। माँ बम्लेश्वरी का सिंहासन स्वर्ण निर्मित कमल के आकार का है। पहाड़ी से नीचे उतरने पर माँ बम्लेश्वरी देवी का एक दूसरा मंदिर है जो ‘छोटी बम्लेश्वरी देवी माँ’ के नाम से प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ी भाषा में माँ बम्लेश्वरी को भक्तजन ‘बम्लाई दाई’ के नाम से पुकारते हैं।
7.चम्पकेश्वर महादेव मंदिर : यह एक प्राचीन मंदिर है जो जंगल के बीच में चंपारण में स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित लिंग के ऊपर दो रेखाएँ उत्कीर्ण है जिससे यह तीन भागों में विभाजित हो गया है। लिंग के इन तीनों भागों में ऊपर के भाग में गणेशजी की छवि उत्कीर्ण है जबकि मध्य भाग में शिवजी की छवि उत्कीर्ण है। निम्न भाग पार्वतीजी का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ दूर-दूर से हजारों की संख्या में भक्तजन आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की मनौती मानते हैं।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख मंदिर
- भोरमदेव मंदिर भोरमदेव (क.)
- देवरानी-जेठानी मंदिर तालागांव (बि.)
- राजीव लोचन मंदिर राजिम (ग.)
- तेलिन माता का मंदिर केशकाल (को.)
- सिद्धेश्वर मंदिर पलारी (ब.बा.)
- कुलेश्वर महादेव मंदिर राजिम (ग.)
- महामाया मंदिर रतनपुर (बि.)
- दन्तेश्वरी देवी मंदिर दन्तेश्वरी (दं.)
- मामा-भांजा मंदिर बारसूर (दं.)
- बम्लेश्वरी देवी का मंदिर डोंगरगढ़ (राज.)
- गुढ़ियारी मंदिर केसरपाल (ब.) शबरी मंदिर
- खरौद (जां.-चां.) डिडनेश्वरी मंदिर मल्हार (बि.)
- समलेश्वरी देवी मंदिर चांपा (जां.-चां.)
- चितावरी देवी मंदिर धोबनी (ब.बा.)
- लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद (जां.-चां.)
- कपिलेश्वर मंदिर बालौद देव मंदिर किरारी गोढ़ी (बि.)
- अयप्पा स्वामी मंदिर तिफरा
- (बि.) शिवरीनारायण का मंदिर शिवरीनारायण (जां.-चां.)
- भैरव मंदिर रतनपुर (बि.)
- अर्धनारीश्वर शिव मंदिर देवगढ़ (स.)
- खल्लारी माता मंदिर खल्लारी (म.)
- सोमेश्वर महादेव मंदिर राजिम (ग.)
- काली मंदिर बिलासपुर माँ सिंहवासिनी मंदिर
- कांकेर महाकालेश्वर मंदिर बेलगहना (बि.) चन्द्रहासनी देवी मंदिर चन्द्रपुर (जां.-चां.)
- धूमनाथ मंदिर सरगांव (बि.)
- कलेश्वर महादेव मंदिर पीथमपुर (जां.-चां.)