सोनाखान विद्रोह (sonakhan vidroh Chhattisgarh )
सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह जनहितकारी कार्यों में रुचि लेते थे। जब 1856 ई० में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा तो उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए अपना सब अनाज संग्रह लोगों के लिए खोल दिया।
जब यह भी कम पड़ गया तो उन्होंने माखन बनिया नामक एक व्यापारी के गोदाम का अनाज अकाल-पीड़ित लोगों में वितरित कर दिया। व्यापारी ने इसकी शिकायत रायपुर डिप्टी कमिश्नर से की।
डिप्टी कमिश्नर ने वीर नारायण सिंह पर लूटपाट व डकैती का आरोप लगाकर 24 अगस्त, 1856 ई० को गिरफ्तार कर लिया और रायपुर जेल में डाल दिया।
10 मई, 1857 को मेरठ से आरंभ हुए 1857 के विद्रोह की चिंगारी पूरे देश में फैल गई। विद्रोह की अग्नि रायपुर की सेना में धधक उठी।
20 अगस्त, 1857 ई० को रायपुर स्थित तीसरी देशी रेजीमेंट के सैनिकों के सहयोग से वीर नारायण सिंह जेल से भाग निकलने में कामयाब हुए। जेल से भागने के बाद वीर नारायण सिंह सोनाखान पहुँचे और वहाँ उन्होंने अपने नेतृत्व में 500 सैनिकों की एक सेना संगठित की।
गावीर नारायण सिंह के जेल से भाग निकलने की सूचना पाकर डिप्टी कमिश्नर ने स्मिथ के नेतृत्व में अंग्रेजों की एक सेना को सोनाखान के लिए रवाना किया। स्मिथ खरोद होता हुआ देवरी पहुंचा जहाँ का जमींदार महाराज साय, वीर नारायण सिंह का खानदानी दुश्मन था।
वहाँ रहकर स्मिथ ने ऐसी व्यवस्था की जिससे सोनाखान को युद्ध के समय कहीं से बाहरी सहायता न मिल सके।
उसने 1 दिसम्बर, 1857 ई० को देवरी से सोनाखान के लिए प्रस्थान किया । देवरी के जमींदार अंग्रेजी सेना का पथ प्रदर्शन कर रहे थे। सोनाखान से तीन फल्ग पहले एक नाले के समीप वीर नारायण सिंह की सेना ने स्मिथ की सेना पर आक्रमण कर दिया ।
यहाँ पर दोनों सेनाओं के बीच घमासान सुख हुआ। आरंभिक विफलता के बाद बाहरी सहायता मिलने के कारण स्मिथ की स्थिति संभल गई और वह अपनी सेना के साथ आगे बढ़ने लगा।
वीर नारायण सिंह की सेना पीछे हटने लगी। दोपहर को अंग्रेजी सेना सोनाखान की बस्ती में घुस आई और उसने पाली गांव में आग लगा दी। सोनाखान बुरी तरह से जल गया।
2 दिसम्बर, 1857 को कटंगी की फौज स्मिथ से जा मिली। दोपहर भोजन के पश्चात् स्मिथ उस पहाड़ी की जोर चला जहाँ वीर नारायण सिंह अपनी सेना के साथ तैयार था।
स्मिथ की बड़ी सेना में उस पहाड़ को चारों ओर से घेर लिया। दोनों ओर से गोलियां चलती रही। अन्त में वीर नारायण सिंह गिरफ्तार कर लिये गये और उन्हें पुनः रायपुर जेल में डाल दिया
वीर नारायण सिंह पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। 10 दिसम्बर, 1857 ई० को वीर नारायण सिंह को जय स्तम्भ चौक पर प्राणदंड दिया गया। इस प्रकार, देश के स्वाधीनता आंदोलन में छत्तीसगढ़ का यह प्रथम सेनानी शहीद हो गया। वह एक आदिवासी वीर था ।
जय स्तम्भ चौक आज भी वीर नारायण सिंह का यशगान करते हुए स्थित है
वीर नारायण सिंह के बलिदान के पश्चात् उनके पुत्र गोविन्द सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसे नागपुर जेल में रखा गया, पर वर्ष 1860 ई० में उसे रिहा कर दिया गया। वह सोनाखान वापस आया।
उसने देखा कि सोनाखान की जमींदारी पर पिचरी के जमींदार व उसके चाचा महाराज साय ने कब्जा कर लिया है। सोनाखान की | गगीदारी पुरस्कारस्वरूप महाराज साय को अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई थी क्योंकि उसने वीर नारायण सिंह की गिरफ्तारी में अंग्रेजों की सहायता की थी।