रायपुर में हनुमान सिंह का विद्रोह CGPSC & VYAPAM GK

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छत्तीसगढ़ रायपुर में हनुमान सिंह का विद्रोह

रायपुर में हनुमान सिंह का विद्रोह – रायपुर फौजी छावनी में मैग्जीन लश्कर हनुमान सिंह ने रायपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया। वह मूलतः बैसवारा का राजपूत था। विद्रोह के समय उसकी अवस्था लगभग 35 वर्ष की थी। 18 जनवरी, 1858 ई० को 7.30 बजे शाम को हनुमान सिंह तीसरी टुकड़ी के सार्जेण्ट मेजर सिडवेल की उसके घर में घुसकर हत्या कर दी।
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इस घटना से रायपुर में विद्रोह का आरंभ हुआ। हत्या करने के उपरांत उसने पुलिस शिविर के सिपाहियों को संबोधित करते हुए उन्हें इस विद्रोह में भाग लेने का आह्वान किया। इसके जवाब में सरकारी सेना ने सिपाहियों को विद्रोहियों का साथ छोड़ने की चेतावनी दी।
लेफ्टिनेंट सी० बी० एल० स्मिथ ने विद्रोहियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया। विद्रोही सिपाहियों की संख्या 17 थी। उन पर मुकदमा चला और वे अपराधी साबित हुए। उन्हें 22 जनवरी, 1858 ई० की सुबह पूरी सेना के सामने फाँसी दे दी गई। फाँसी पाने वाले 17 लोगों में एक, जिसका नाम गाजी खाँ था, हवलदार था तथ शेष गोलन्दाज थे।
गोलन्दाजों के नाम : शिवनारायण, गूलीन, अब्दुल हमात, पन्नालाल, मातादीन, बलिहू, ठाकुर सिंह, अकबर हुसैन, लाल सिंह, परमानन्द, बदलू, दुर्गा प्रसाद, शोभाराम, नूर मोहम्मद, देवदीन एवं शिव गोविन्द। फाँसी देने के साथ-साथ इनकी सारी सम्पति भी जब्त कर ली गई। इन नामों से स्पष्ट है कि इस विद्रोह में सभी जाति और धर्म के लोग शामिल थे।
इस विद्रोह का नेता हनुमान सिंह घटना के बाद फरार हो गया। उसे पकड़ने के लिए सरकार ने अथक प्रयास किया। उसे पकड़ने के लिए सरकार की ओर से 500 रु० का इनाम घोषित किया गया।
अंग्रेजों की आशंका थी कि हनुमान सिंह अन्य ब्रिटिश अधिकारियों जैसे स्मिथ, इलियट आदि को भी मार डालने का प्रयास करेगा। इसके बाद हनुमान सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
विद्रोह का प्रभाव
हालांकि 1857 का विद्रोह अपने तात्कालिक लक्ष्य को पाने में विफल रहा लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव पड़ा। यह राष्ट्रभक्तों के लिए प्रेरणा-स्रोत बना और इसने राष्ट्रीय आंदोलन के उदय और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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