संगम काल GK | Sangam Period GK – भारत GK | Sangam KAAL GK Quiz | संगम काल से सम्बंधित वस्तुनिष्ट प्रश्न
SANGAM KAL, SOUTH INDIA HISTORY | दक्षिण भारत का इतिहास | चोल चेर पांडय | दक्षिण भारतीय राज्य | संगम काल GK
Sangam Kal History Ncert Notes in Hindi
(UPSC/IAS, IPS, PSC, Vyapam, Bank, Railway, RI, SSC एवं अन्य सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए उपयोगी )
संगम काल MCQ GK Questions Answer in Hindi
- भारत के सुदूर दक्षिण में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के मध्य स्थित प्रदेश को तमिलकम् प्रदेश कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें चेर, चोल और पाण्ड्य राज्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे।
- सुदूर दक्षिण में पाण्ड्य राज्य था, जिसकी राजधानी मदुरई थी। इसके अतिरिक्त चोलों की राजधानी उरैयर एवं चेरों की राजधानी वांजी थी।
- मेगास्थनीज के विवरण, अशोक के अभिलेख तथा कलिंग नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में भी इन तीनों राज्यों का वर्णन मिलता है। परन्तु इनके विषय में विस्तृत जानकारी संगम साहित्य से ही मिलती है।
- संगम शब्द का अर्थ है, संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। इस प्रकार संगम तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद् थी। तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। सामान्यत: इस साहित्य का विकास काल 100-250 ई. माना जाता है।
- सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया।
- संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे। परिषद् अथवा संगम की संस्तुति के उपरांत ही वह रचना प्रकाशित हो पाती थी।
- प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इस प्रकार के लगभग तीन परिषदों (संगमों) का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया।
- प्रथम संगम का आयोजन मदुरा में किया गया। इस संगम के अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि (आचार्य अगत्तियनार) थे। इसमें रचित प्रमुख ग्रन्थ हैं- अकत्तियम, परिपदल एवं मुदुनरै आदि। परन्तु इस संगम का कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है।
- द्वितीय संगम का आयोजन कपाट पुरम (अलवै) में किया गया। इस संगम के भी अध्यक्ष आरम्भ में अगस्त्य ऋषि ही थे। बाद में उनका स्थान उनके शिष्य तोलकाप्पियर ने लिया।
- द्वितीय संगम के दौरान जिन ग्रन्थों की रचना हुई उनमें से एकमात्र ग्रन्थ तोल्काप्पियम् ही उपलब्ध है। तोल्काप्पियम् की रचना अगस्त्य ऋषि के शिष्य तोल्काप्पियम् ने की थी। तोल्काप्पियम् तमिल व्याकरण की प्रसिद्ध रचना है।
- तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मुदरा में किया गया। इस संगम के अध्यक्ष नक्कीरर थे।
- तृतीय संगम में शामिल विद्वानों में उल्लेखनीय थे- इरैयनार, कपिलर, परवर, सित्तले सत्तना और पाण्ड्य शासक उग्र।
- तृतीय संगम की रचनाओं में प्रमुख हैं- नेडुण्थोकै, कुरून्थोकै, पदिलुप्पत्तु, परिपादल आदि। इस संगम के भी अधिकांश ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं तथापि जो संगम साहित्य अभी उपलब्ध है, वह इसी संगम की रचना मानी जाती है।
- उपर्युक्त तीनों संगमों का उल्लेख 8वीं शताब्दी के ग्रन्थ इरैयनार अग्गपोल में हुआ है। किन्तु इस ग्रन्थ में दिये गये विवरण में ऐतिहासिक तथ्यों से अधिक कल्पना का सहारा लिया गया है।
संगम साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ
- तोल्काप्पियम्- इसकी रचना अगस्त्य ऋषि के शिष्य तोल्काप्पियर के द्वारा की गयी। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रन्थ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ है।
- कुराल- तिरूमल्लमीर द्वारा रचित इस ग्रन्थ को तमिल का बाइबिल कहा जाता है। इस ग्रन्थ को कुरल या मुप्पाल के नाम से भी जाना जाता है। यह तमिल साहित्य का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
- संगमकालीन ग्रन्थों में शिल्पादिकारम्, मणिमेखले, जीवक चिंतामणि, वलयपति तथा कुण्डलकेशि महाकाव्य है। इन पाँचों में प्रथम तीन ही उपलब्ध हैं।
- शिल्प्पादिकारम्- यह तमिल साहित्य का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है नूपुर की कहानी। इस महाकाव्य की रचना चेर शासक सेन गुटुवन के भाई इलांगोआदीगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शदी में की। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नूपुर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका कोवलन् और कण्णगी है। यह महाकाव्य पुहारकांडम, मदुरैक्कांडम्, वंजिक्कांडम में विभाजित है जिनमें क्रमश: चोल, पाण्ड्य और चेर राज्यों का वर्णन है। यह काव्य मूलत: वर्णनात्मक है। इसे तमिल साहित्य का उज्जवलतम रत्न माना जाता है।
- मणिमेखलै- बौद्ध धर्म की श्रेष्ठता प्रतिपादित करने वाले इस महाकाव्य की रचना मदुरा के एक व्यापारी सीतलै सत्तनार ने की। मणिमेखलै की रचना शिल्प्पादिकारम के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि जहाँ शिल्पादिकारम् की कहानी खत्म होती है, वहीं से मणिमेखले की कहानी प्रारम्भ होती है। सीतलै सत्तनार कृत इस महाकाव्य की नायिका मणिमेखलै शिल्पादिकारम् के नायक कोवलन् की दूसरी पत्नी वेश्या माधवी की पुत्री थी।
- जीवक चिन्तामणि- जीवक चिन्तामणि जैन मुनि एवं महाकवि तिरक्तदेवर की अमर कृति है। इस ग्रन्थ को तमिल साहित्य के प्रसिद्ध ग्रन्थों में गिना जाता है। तेरह खण्डों में विभाजित इस ग्रन्थ में लगभग 3,145 पद है। इस महाकाव्य में कवि ने जीवक नामक राजकुमार का जीवनवृत प्रस्तुत किया है। इस काव्य का नायक जीवक आठ विवाह करता है। जीवक चिन्तामणि में आठ विवाह का वर्णन किया गया, इसलिए इसे मणनूल (विवाह ग्रन्थ) भी कहा जाता है।
संगम साहित्य से ज्ञात राजनैतिक इतिहास
- संगम साहित्य में तत्कालीन तीन राजवंशों चेर, चोल एवं पाण्ड्य के विषय में जानकारी मिलती है।
चेर राजवंश
- ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त होने वाला उल्लेख- चेरपाद सम्भवत: चेरों के विषय में प्रथम जानकारी है। इसके अलावा रामायण, महाभारत, अशोक के शिलालेख, कालीदास कृत महाकाव्य रघुवंश से भी चेरों के बारे में जानकारी मिलती है।
- चैर राज्य आधुनिक कोंकण, मालाबार का तटीय क्षेत्र तथा उत्तरी त्रावनकोर से लेकर कोचीन | तक विस्तृत था।
- चेरों का राजकीय चिह्न धनुष था।
- चेर वंश का प्रथम शासक उदियन जेरल था। इसका समय लगभग 130 ई. माना जाता है। ३ चेर वंश का महानतम शासक शेनगुट्ट्वन अथवा धर्मपरायण कुट्टवन (लगभग 130 ई.) था। इसे लाल चेर भी कहा जाता था। इसकी प्रशंसा संगमकालीन कवियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि परणर ने की है।
- चैरकालीन इतिहास में शेनगुट्टवन को महान योद्धा एवं कला तथा साहित्य के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
- शेनगुट्टवन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी- दक्षिणी प्रायद्वीप में सर्वप्रथम पत्तिनी या कण्णगी पूजा की प्रथा को प्रारम्भ करना। इसने शती कण्णगी की याद में एक विशाल मंदिर एवं उसकी प्रतिमा का निर्माण करवाया।
- चेर शासक पेरूनेजेरल इरंपोरई (लगभग 190 ई.) ने सामंतों की राजधानी तगड़ (धर्मपुरी) पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उसे विद्वान, अनेक यज्ञ को सम्पन्न कराने वाला एवं अनेक
- वीर पुत्रों का पिता होने का गौरव प्राप्त था।
- पेरूनेजेरल इरंपोरई का विरोधी तगड़ के राजा अडिगयमान अथवा नडुमान का महत्त्वपूर्ण कार्य था- दक्षिण भू-भाग में सर्वप्रथम गन्ने की खेती को आरम्भ करवाना।
- एक अन्य चेर राजा शेय था जिसे हाथी की आँख वाला कहा गया है। उसे पाण्ड्य शासक ने पराजित कर दिया, परन्तु अंत में वह अपनी स्वतन्त्रता बनाये रखने में सफल रहा।
चोल राजवंश
- चोलों के विषय में प्रथम जानकारी पाणिनी कृत अष्टाध्यायी से मिलती है। इस विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं- कात्यायन कृत वर्तिका, महाभारत, संगम साहित्य, पेरिप्लस ऑफ दी इरीश्चियन सी एवं टॉलमी का उल्लेख आदि।
- चोल राज्य आधुनिक कावेरी नदी घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचिरापल्ली एवं तंजोर तक विस्तृत था।
- उपलब्ध साक्ष्यों के आधार माना जाता है कि इनकी पहली राजधानी उत्तरी मनलूर थी।
- कालांतर में उरैयुर तथा तंजावुर चोलों की राजधानी बनी। ३ चोलों का राजकीय चिह्न बाघ था।
- इस वंश का प्रथम शासक उरवपहरें इलन जेत चेन्नी था। इसने अपनी राजधानी उरैयुर में स्थापित की।
- प्रारम्भिक चोल शासकों में करिकाल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। अनुमानत: इस शासक ने 190 ई. मे शासन किया। उसे जले हुए पैरों वाला (The Man with the Charred Leg) कहा गया है।
- करिकाल ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। तंजौर के निकट वेण्णि नामक युद्ध में विजय प्राप्त करने से उसकी ख्याति बढ़ गयी। इस युद्ध में उसने ग्यारह राजाओं के समूह को जिसमें चेर और पाण्ड्य भी थे, पराजित कर दिया। एक-दूसरे महत्त्वपूर्ण युद्ध, वाहैप्परंदलई के युद्ध में उसने नौ छोटे-छोटे शासकों की संयुक्त सेना को हराया।
- संगम साहित्य के अनुसार करिकाल ने कावेरी नदी के मुहाने पर पुहार पत्तम (कावेरीपट्टनम) की स्थापना की।
- करिकाल ने कृषि, उद्योग-धंधे तथा व्यापार-वाणिज्य के विकास को प्रोत्साहन दिया। उसके | समय में कावेरीपट्टनम उद्योग और व्यापार का केन्द्र बन गया।
- शक्तिशाली नौ-सेना रखने वाला करिकाल संगम-युग का शायद सबसे महान एवं पराक्रमी शासक था।
- पट्टिनप्पालै कृति के उल्लेख के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि करिकाल के समय में उद्योग तथा व्यापार उन्नति की अवस्था में थे। करिकाल ने पट्टिनप्पालै के लेखक रूद्रन कत्रनार को 1,60,000 स्वर्ण मुद्राएँ उपहार में दिया था।
- करिकाल के बाद इस वंश का अंतिम महान शासक नेडुजेलियन था। इसकी मृत्यु युद्ध क्षेत्र में हुई।
- ईसा की तृतीय शताब्दी से 9वीं शताब्दी तक चोलों का इतिहास अंधेरे में था, पर 9वीं शताब्दी के मध्य चोल नरेश विजयालय द्वारा चोल शक्ति का पुनः उद्धार किया गया।
पाण्ड्य राजवंश
- पाण्ड्य राजवंश का प्रारम्भिक उल्लेख पाणिनीकृत अष्टाध्यायी में मिलता है। इसके अतिरिक्त अशोक के अभिलेख, महाभारत एवं रामायण में भी पाण्ड्य राज्य की जानकारी मिलती है।
- पाण्ड्यों की राजधानी मदुरा (मदुरई) थी। मदुरा का दूसरा नाम कदम्बवन था तथा यह वैगा नदी के दक्षिण में बसा हुआ था। मदुरा के विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी जानकारी मिलती है।
- मदुरा अपने कीमती मोतियों, उच्चकोटि के वस्त्रों एवं उन्नतिशील व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
- इरिथ्रियन सी के विवरण के आधार पर पाण्ड्यों की प्रारम्भिक राजधानी कोल्कई/कोर्कईं को माना जाता है।
- सम्भवतः पाण्ड्य राज्य मदुरई, रामनाथपुरम्, तिरूनेलवेल, तिरूचिरापल्ली एवं ट्रावनकोर तक विस्तृत था।
- पाण्ड्यों का राजकीय चिह्न मछली (मत्स्य) था।
- संगम साहित्य में वर्णित पाण्ड्य राजाओं में पहला नाम नेडियोन का आता है। इसी ने पहली नदी बनाई तथा समुद्र की पूजा की प्रथा आरम्भ करवाई, परन्तु इस राजा की ऐतिहासिकता को संदिग्ध माना जाता है।
- पलशालैमुडुकुड़मी को पाण्ड्य वंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक माना जाता है। अनेक यज्ञों | का अनुष्ठान करवाने के कारण ही इस पलशालै यानि अनेक यज्ञशालाएँ बनाने वाला कहा गया। यह अपने द्वारा जीते गये राज्यों के साथ कठोरता का व्यवहार करता था।
- पाण्ड्य शासकों में सबसे विख्यात नेडुजेलियन (210 ई.) था। इसकी प्रसिद्धि तलैयालंगानम् के युद्ध में विजय के परिणामस्वरूप हुई। उसने इस युद्ध में चोलों एवं चेरों को उनके अन्य पाँच सामंत मित्रों के साथ बुरी तरह परास्त किया।
- नेडुजेलियन वीर विजेता के अतिरिक्त एक कुशल प्रशासक भी था। इसने सेना का गठन किया तथा किसानों और व्यापारियों के हित में अनेक कार्य किये। नेडुजेलियन की सेना में मोती तथा मछली संग्रह करने वाले पूर्वी समुद्रतटीय लोगों को विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता था।
- संगमकालीन शासन का स्वरूप राजतन्त्रात्मक था। राजा का पद वंशानुगत एवं ज्येष्ठता पर आधारित था। प्रशासन का समस्त अधिकार राजा के पास होता था, इसलिए उसकी प्रवृत्ति में का समावेश होता था।
- राजा प्रत्येक दिन अपनी सभा (नलवै) में प्रजा की कठिनाइयों को सुनता था। राज्य का सर्वोच्च न्यायालय मनरम होता था, जिसका सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था।
- प्रतिनिधि परिषद् राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाती थी, साथ ही प्रशासन में राजा का सहयोग करती थीं। इन परिषद् के सदस्य जन-प्रतिनिधि, पुरोहित, ज्योतिषी, वैद्य एवं मन्त्रीगण होते थे। इस परिषद् को पंचवारम या पंचमहासभा भी कहा जाता था।
- शासन में गुप्तचर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, इन्हें और्रर या वै कहा जाता था।
- प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य या मंडलम नाडु में तथा नाडु उर में विभाजित था।
- समुद्रतटीय कस्बे को पत्तिनाम, बड़े गाँव को पेरूर, छोटे गाँव को सिरूर तथा पुराने गाँव को मुडूर कहते थे।
- संगमकाल में राजकीय आय के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में कृषि तथा व्यापार पर लगने वाले कर थे।
- संगमकाल में भूमि पर लगने वाले कर को कराई, सामंतों द्वारा दिया जाने वाला कर एवं लूट द्वारा प्राप्त धन को इराई, सीमा शुल्क द्वारा प्राप्त धन को उल्गू या संगम कहा जाता था।
- राज्य की ओर से धन की अतिरिक्त माँग एवं जबरन लिए गये उपहार को इरावू (Iravu) कहा जाता था।
- संगमकाल में सम्भवत: सकल उत्पादन का 1/6 भाग भूमिकर के रूप में लिया जाता था।
- संगम साहित्य में व्यापारी वर्ग को बेनिगर कहा गया है। इस वर्ग के लोग ही आंतरिक एवं विदेशी व्यापार का संचालन करते थे।
- संगमकालीन विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग पुहार बंदरगाह (कावेरी पट्टनम) से संचालित होता था। कावेरी पट्टनम के दो अन्य नाम थे – पटिपाक्म् एवं मरुवरपाक्कम्।
- संगमकाल में उरैयुर सूती कपड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
- इस समय व्यापारिक कारवाँ का नेतृत्व करने वाले स्थल सार्थवाह को मासात्तुवान एवं समुद्री सार्थवाह को मानामिकन कहा जाता था।
- संगमकाल में अवनम बाजार को कहा जाता था।
- संगमकाल के प्रमुख व्यापारिक वर्ग थे- पुलैयन (रस्सी बनाने वाला), चरवाहे, एनियर (शिकारी), मछुआरे, कुम्हार, लुहार, स्वर्णकार, बढ़ई आदि। मलवर नाम के लोगों का व्यवसाय डाका डालना था।
- संगमकाल के व्यापार के विषय में विस्तृत जानकारी पहली सदी में किसी अज्ञात रचयिता द्वारा लिखी गयी पुस्तक पेरिप्लस ऑफ दि एरीश्चियन सी से मिलती है।
- संगमकाल में महत्त्वपूर्ण कृषि उत्पादन के रूप में गन्ना, रागी, चावल एवं कपास का उत्पादन किया जाता था।
- संगमकाल में कृषकों में बल्लाल वर्ग का महत्त्वपूर्ण स्थान था। बल्लाल वर्ग दो भागों में बँटे थे- सम्पन्न कृषक या बल्लाल तथा मजदूर कृषक या बल्लार।
- संगमकालीन समाज पाँच वर्गों में विभाजित था
- ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग) 2. अरसर (शासक वर्ग) 3. बेनिगर (व्यापारी वर्ग) 4. बेल्लाल/ वेल्लाल (बड़े कृषक एवं शासक वर्ग) 5. बेल्लार/वेल्लार (मजदूर कृषक वर्ग)
- दास प्रथा का प्रचलन इस काल में नहीं था।
- संगमकाल में एक पत्नी प्रथा का प्रचलन था, परन्तु सम्पन्न वर्ग के लोग एक से अधिक पत्नी रखते थे
- आमतौर पर दो प्रकार के विवाहों का प्रचलन था- कलावु एवं कार्प। कलावु विवाह माता-पिता के अनुमति के बिना होता था जबकि कार्पू विवाह परिवार की सहमति से होता था।
- संगमकालीन ग्रन्थों में प्रेम विवाह को पंचतिणै एक पक्षीय प्रेम को कैक्किणै एवं अनुचित प्रेम को पेरूनिदिौ कहा गया है।
- संगमकाल में स्त्रियों की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं थी। उनकी भी स्थिति उत्तर भारतीय समाज के स्त्रियों के समान ही थी।
- उच्च वर्ग की कुछ स्त्रियाँ जैसे औवैयर एवं नच्चेलिमर ने एक सफल कवियित्री के रूप में अपने को स्थापित किया। इस तरह स्पष्ट है कि उच्च वर्ग की स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करती थीं जबकि निम्न वर्ग की स्त्रियाँ खेतों में काम करती थीं।
- विधवाओं की स्थिति बदतर थी। वे स्वेच्छा से सती होना सरल समझती थीं। स्वैच्छिक सती | प्रथा का प्रचलन संगमकालीन समाज में था।
- संगमयुगीन समाज में गणिकाओं एवं नर्तकियों के रूप में परात्तियर व कणिगैचर का उल्लेख मिलता है। ये वेश्यावृत्ति द्वारा जीवनयापन करती थीं।
- प्रायः कविता पाठ, गायन, वादन, नृत्य, नाटक आदि मनोरंजन के साधन थे। इसके अतिरिक्त मनोरंजन के अन्य साधन थे- शिकार खेलना, कुश्ती लड़ना, पासा खेलना एवं गोली खेलना आदि। याल नामक किसी वाद्ययन्त्र का भी उल्लेख मिलता है।
- वैदिक व ब्राह्मण धर्म का प्रचलन तमिल प्रदेश में काफी था। संगमकाल में तमिल प्रदेश में मुरुगन, शिव, बलराम एवं कृष्ण की उपासना की जाती थी। इनमें से मुरुगन/मुरुकन की उपासना सर्वाधिक पुरानी थी, कालांतर में मुरुगन को सुब्रह्मण्यम कहा गया।
- स्कंद-कार्तिकेय से मरुगन देवता की अभिन्नता स्थापित की गयी। तमिल प्रदेश के स्कंद कार्तिकेय को उत्तर भारत में शिव-पार्वती के पुत्र के रूप में जाना जाता है।
- तमिल प्रदेश में मुरुगन का प्रतीक मुर्गा (कुक्कुट) को माना गया, जिसे पर्वत शिखर पर क्रीड़ा | करना पसन्द है।
- संगम काल में तमिल प्रदेश में बलि प्रथा का प्रचलन हुआ।
- तमिल साहित्य के महाकाव्य मणिमेखले में शैव धर्म के कापालिक सम्प्रदाय तथा बौद्ध धर्म के श्रेष्ठता का उल्लेख है।
संगम काल mcq GK
1. संगम काल में ‘संगम’ शब्द का क्या अर्थ था? [RPSC 2008]
(A) शाही दरबार
(B) कवियों की सभा
(C) धार्मिक नेताओं की सभा
(D) नदियों का संगम
उत्तर – B
2. दक्षिण भारत के इतिहास में संगम युग के सम्बन्ध में कौन-सा कथन सही है? [MPPCS 2008]
(A) यह राजनैतिक अराजकता का युग था
(B) यह वैदिक संस्कृति के पुनरुत्थान का काल था
(C) यह महान् साहित्यिक गतिविधियों का युग था
(D) यह विप्लव और युद्ध का काल था
उत्तर – C
3. निम्नलिखित में से कौन एक तमिल देश के संगम युग का राजवंश नहीं था? [UP UDA/LDA 2010]
(A) चेर
(B) चोल
(C) पल्लव
(D) पाण्ड्य
उत्तर – C
4. किस ऋषि के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दक्षिण भारत का आर्यकरण किया, उन्हें आर्य बनाया? [UPSC 2013]
(A) विश्वामित्र
(B) अगस्त्य
(C) वशिष्ठ
(D) साम्भर
उत्तर – B
5. निम्न में से किस एक स्थान पर तीनों साहित्य सभाएँ आयोजित की गई थीं? [UPSC 2008]
(A) तंजावुर
(B) काँचीपुरम्
(C) मदुरै एवं कपाटपुरम्
(D) वज्जि
उत्तर – C
6. तोल्काप्पियम ग्रन्थ सम्बन्धित है मियम अन्य सम्बान्धतह । [UPPCS 1997]
(A) प्रशासन से
(B) विधि से
(C) व्याकरण व काव्य से
(D) उपरोक्त सभी से
उत्तर – C
7. संगम साहित्य में तोल्काप्पियम एक ग्रन्थ है
(A) तमिल कविता [UPPCS 2014]
(B) तमिल व्याकरण का
(C) तमिल वास्तुशास्त्र का
(D) तमिल राजशास्त्र का
उत्तर – B
8. तमिल में महाभारत के सर्वप्रथम अनुवादक (TrAnslAtor) थे [MPPCS 2010]
(A) पेरुदेवनार
(B) कम्बन
(C) सुन्दरमूर्ति
(D) भारवि
उत्तर – A
9. धार्मिक कविताओं का संकलन ‘कुरल’ किस भाषा में है? [MPPSC 1997]
(A) ग्रीक
(B) तमिल
(0) तेलुगू
(D) पालि
उत्तर – B
10. निम्नलिखित तमिल ग्रन्थों में से किसे ‘लघुवेद’ की संज्ञा दी गई है? [UP RO/ARO 2013]
(a) नन्दिकलम्बकम्
(b) कलिंगतुपर्णि
(c) पेरियापुराणम
(d) कुरल
उत्तर – D
11. निम्नलिखित में से कौन तमिल रामायण या रामावतारम् का लेखक था? [UP UDA/LDA 2010]
(a) कम्बन
(b) कुट्टन
(0) नन्नय
(d) टिक्कण
उत्तर – A
12. संगमकालीन किस रचना को तमिल वेद कहा जाता है? UPSC 2008]
(a) शिलप्पादिकारम्
(b) मणिमेखलै
(c) कुरल
(d) एट्टाप
उत्तर – C
13. निम्नलिखित राजवंशों में किसका उल्लेख संगम साहित्य में नहीं हुआ है? [BPSC 1996]
(a) कदंब
(b) चेर
(c) चोल
(d) पाण्ड्य
उत्तर – A
14. धार्मिक कविताओं का संकलन ‘कुरल’ किस भाषा में है? [MPPCS 1997]
(a) ग्रीक
(b) तमिल
(C) तेलुगू
(d) पारसी
उत्तर – B
15. प्रारम्भिक तमिल साहित्य में निम्नलिखित में से कौन-से महाकाव्य थे? [UPPCS 2005]
(a) तोलकाप्पियम एवं तिरुक्कुरल
(b) अहनानुरु एवं पुरुनानुर
(c) पदित्पत्तु एवं मदुरैकांची
(d) शिलप्पादिकारम् एवं मणिमेखलै
उत्तर – D
16. महाकाव्य ‘शिलप्पादिकारम्’ किससे सम्बन्धित है? [CDS 2016
(a) राम की कहानी
(b) कथानक में जैन तत्त्व
(c) श्रीलंका के बौद्धों की संस्कृति
(d) शान्ति उपासना की पूजा पद्धति
उत्तर – B
17. शिलप्पादिकारम् का लेखक था [UPPCS 2012]
(a) इलंगो
(b) परणर
(c) करिकाल
(d) विष्णुस्वामिन
उत्तर – A
18. ‘मणिमेकलाई के लेखक कौन हैं? ICDS 2018]
(a) कोवालन
(b) चतनार
(c) इलांगो अडिगल
(d) तिरुतक्कातेवर
उत्तर – B
19. चेर राज्य की राजधानी कहाँ थी?
(a) वज्जि
(b) पुहार
(c) कावेरीपत्तनम्
(d) कोरकै संगम काल
उत्तर – A
20. किस चेर शासक को ‘लाल चेर’ के नाम से जाना जाता है?
(A) उदियंजीरल
(B) नन्दुनजेरल आदन
(C) शेनगुटूवन
(D) करिकाल
उत्तर – C
21. शिलप्पादिकारम् में किस राजा का वर्णन पत्नी पूजा के प्रवर्तक के रूप में हुआ है? [UPSC 2008] (A) नेंडुजेलियन
(B) करिकाल
(C) शेनगुटूवन
(D) राजेन्द्र
उत्तर – C
22. पाण्ड्य राज्य की राजधानी कहाँ थी?
(A) उरैयूर
(B) मदुरै
(C) पुहार
(D) वज्जि
उत्तर – B
23. ‘तलैयालंगानम् का युद्ध किस पाण्ड्य शासक के काल में हुआ था?
(A) नेंडुजेलियन
(B) नेडियोन
(C) वेरिवरशेलिय
(D) नल्लिवकोडन
उत्तर – A
24. संगमकालीन साहित्य में ‘कोन’ एवं ‘मन्नन’ किसके लिए प्रयुक्त होते थे? ___ [RAS/RTS 2010]
(A) प्रधानमन्त्री
(B) राजस्व मन्त्री
(C) सेनाधिकारी
(D) राजा
उत्तर – D
25. संगमकालीन प्रशासन में राज्य को क्या कहा जाता था?
(A) मण्डलम्
(B) वलनाडू
(C) नाडू
(D) उर
उत्तर – A
26. तमिल संगम ग्रन्थों के अनुसार निम्नलिखित में से कौन बड़े भूमि स्वामी रहे थे? [CDS 2018]
(A) गृहपति
(B) उज्हावर
(C) अडिमाई
(D) वेल्लार
उत्तर – D
27. तयोमंवर (तायुमानवर) की सितार कविता क्यों प्रसिद्ध थी? [Asst. Comm. 2019]
(A) ये रचनाएँ राष्ट्रवादी कृतियाँ थीं
(B) ये रचनाएँ रोमानी महाकाव्य थीं
(C) ये रचनाएँ भक्ति गीत थीं
(D) ये रचनाएँ जाति व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह स्वरूप थीं
उत्तर – D
28. निम्न में से कौन-सी सामाजिक व्यवस्था संगम काल में प्रचलित थी?
(A) विधवा विवाह (B) सती प्रथा (C) पुनर्विवाह (D) ये सभी
उत्तर – D
29. संगमकालीन उस बन्दरगाह का नाम क्या था, जो रोम से व्यापार करने के लिए मुख्य स्थल था? [UPSC 2008]
(A) अरिकामेडू
(B) कावेरीपत्तनम्
(C) मुजरिस
(D) कल्याण
उत्तर – A
30. संगम काल में पाण्ड्यकालीन कोरकई बन्दरगाह किसलिए प्रसिद्ध था?
(A) मोतियों के लिए
(B) कपास के लिए
(C) हाथी दाँत उद्योग के लिए
(D) मसाला उद्योग के लिए
उत्तर – A
31. निम्न में से कौन-सी संस्था विदेशी व्यापार से सम्बन्धित थी? [UPPCS 2018]
(a) श्रेणी
(b) नगरम
(C) नानादेशि
(d) मणिग्राम
उत्तर – C
32. प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में प्राप्य ‘यवनप्रिय’ शब्द द्योतक [IAS (Pre) 1995]
(a) एक प्रकार के उत्कृष्ट भारतीय मलमल का
(b) हाथी दाँत का
(0) नृत्य के लिए यवन राजसभा में भेजी जाने वाली नर्तकियों का
(d) काली मिर्च का
उत्तर – D
33. एम्फोरा जार होता है एक [UPPCS 2014]
(a) छिद्रयुक्त जार
(b) लम्बा एवं दोनों तरफ हत्थेदार जार
(c) चित्रित धूसर जार
(d) काला और लाल मिट्टी का जार
उत्तर – B
34. संगम काल में रोमन व्यापार का केन्द्र बताइए
(a) मदुरै
(b) अरिकामेडु [ssc 2013]
(c) पूम्पुहर
(d) मुसिरि
उत्तर – B
35. ‘पेरिप्लस ऑफ द एरीथ्रियन सी’ के अनुसार निम्न में से कौन-कौन से बन्दरगाह पश्चिमी समुद्र तट पर थे? ___ [UPPCS 2009]
1. सोपारा 2. बारबैरिकम 3. पोदुका 4. मुजरिस
(b) आर कूट
(a) 1,2 और 3
(b) 1, 2 और 4
(c) 1, 3 और 4
(d) 2, 3 और 4
उत्तर – B
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