Q. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत आता हैं – 14-15-21
Q. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 पारित हुआ था 13-09-2005
Q. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 में कुल धाराएं है – 37
महिलाओं के साथ घरों में हो रहे अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा को रोकने के लिए तथा घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के संरक्षण एवं सहायता के लिए भारत सरकार द्वारा घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम-2005 एवं नियम 2006 लागू किया गया है । यह अधिनियम दिनांक 26 अक्टूबर 2006 से पूरे देश (जम्मू-काश्मीर राज्य को छोड़कर) में लागू है। इस अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित महिलाएँ शामिल होंगी- /’
उत्पीड़नकर्ता के साथ एक घर में रह चुकी वे महिलाएँ, जो रक्त, विवाह जैसे संबंध अथवा दत्तक ग्रहण द्वारा उसकी संबंधी है या रही है।
संयुक्त परिवार के रूप में साथ रह रहे पारिवारिक सदस्यों के साथ संबंधी भी इसमें शामिल किये गए है। इसमें केवल पत्नी को ही नहीं बल्कि पुरुष के साथ शारीरिक संबंध रखने वाली महिला, चाहे वह कानूनी रूप से पत्नी हो अथवा न हो, को भी शामिल किया गया है । पुत्री, माँ, बहन, बच्चा ( नर या मादा), विधवा संबंधी, यहाँ तक कि प्रतिवादी से किसी भी तरह संबंधित परिवार में रह रही सभी महिलाएँ इस अधिनियम के अंतर्गत शामिल है।
घरेलू हिंसा के रूप
शारीरिक दुर्व्यवहार (महिलाओं के साथ मारपीट करना तथा शारीरिक उत्पीड़न) । यौन दुर्व्यवहार ( बलात्कार अथवा वर पक्ष के सदस्यों द्वारा बलपूर्वक महिला सम्मोहन करना अथवा बाहरी लोगों को ऐसा कार्य करने देना भड़काना तथा कौटुम्भिक व्यभिचार) ।
शाब्दिक एवं भावनात्मक दुर्व्यवहार (महिलाओं एवं उनके निकटस्थ संबंधियों के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग, विशेषकर बच्चे अथवा लड़के को जन्म न देने के लिए, महिला के रिश्तेदारों को शारीरिक कष्ट पहुंचाने की धमकी देना) ।
आर्थिक शोषण (महिलाओं को वित्तीय साधनों और दैनिक जीवन की बुनियादी जरूरतों से वंचित रखना, जिसमें उनकी परिसम्पत्तियाँ या कमाई छीन लेना भी शामिल है) ।
दहेज की किसी गैर कानूनी मांग की पूर्ति के लिए उत्पीड़न ।
इस अधिनियम के तहत् पीड़ित पक्ष अथवा पड़ोसी, सामाजिक कार्यकर्ता, सगे-संबंधी अथवा अन्य कोई व्यक्ति द्वारा थाने में अथवा सीधे मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज कराया जा सकता है ।
व्यथित व्यक्ति के अधिकार
इस अधिनियम को लागू करने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, उनके इस कानून के तहत कुछ कर्तव्य हैं जैसे- जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्न अधिकारों के बारे में सूचित करना है
पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि संरक्षण आदेश, आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थाई संरक्षण ( कस्टडी) का आदेश, निवास आदेश या मुआवजे का आदेश पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है पीड़ित निशुल्क कानूनी सहायता की मांग कर सकती है पीड़ित भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है, इसके तहत पीड़ित को गंभीर शोषण सिद्ध करने की आवश्यकता है । इसके अलावा, राज्य द्वारा निर्देशित आश्रय गृहों और अस्पतालों की जिम्मेदारी है कि उन सभी पीड़ितों को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान और चिकित्सा सहायता प्रदान करे जो उनके पास पहुंचते हैं।
पीड़ित सेवा प्रदाता या संरक्षण अधिकारी के माध्यम से इन्हें संपर्क कर सकती है । प्रथम श्रेणी के न्यायिक दण्डाधिकारी अथवा मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा संरक्षण आदेश जारी करके अपराधी को पीड़िता के कार्यस्थल अथवा ऐसे किसी स्थान पर जाने से रोकना, जहाँ पीड़िता का आना-जाना हो, उससे बात करने का प्रयास करने, दोनों के द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली परिसम्पत्तियों का अकेले ही प्रयोग करके तथा पीड़िता, घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त करने में उसकी सहायता करने वाले उसके संबंधियों एवं अन्य व्यक्तियों के साथ हिंसा से रोकना एवं बच्चे या बच्चों को अस्थायी रूप से पीड़िता को सौंपना।
अधिनियम की धारा-8 के प्रावधानानुसार छ०ग० राज्य में प्रत्येक जिले में जिला कार्यक्रम अधिकारी / जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी को संरक्षण अधिकारी बनाया गया है। [ i f संरक्षण आदेश का उल्लंघन संज्ञेय एवं गैर जमानती अपराध होगा, जिसके लिए अधिकतम एक वर्ष का कारावास या अधिकतम 20 हजार रूपये के जुर्माने या दोनों का दण्ड दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पीड़िता को आश्रय गृह में आश्रय प्रदान किया जाएगा तथा पीड़िता को आवश्यकता होने पर आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान की जावेगी।
अपराधी को मजिस्ट्रेट द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर पीड़ित महिला को आर्थिक राहत का भुगतान कराने तथा मानसिक एवं भावनात्मक यातना पीड़िता को पहुंची चोटों के लिए अपराधी को मुआवजा या क्षतिपूर्ति का भुगतान करने का निर्देश दिये जाने का अधिनियम में प्रावधान है।
छ0ग0 राज्य में इस अधिनियम की धारा 8 के तहत् प्रत्येक जिले के जिला कार्यक्रम अधिकारी/जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी को संरक्षण अधिकारी 20 अप्रैल 2007 के द्वारा नियुक्त किया गया है।
घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के अन्तर्गत प्रमुख कानूनी प्रावधान
धारा 4 घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला है या किया जा रहा है, की सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकरी को दे सकता है जिसके लिए सूचना देने वाले पर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं तय की जाएगी। पीड़ित के रूप में आप इस के तहत ‘संरक्षण अधिकारी’ या ‘सेवा प्रदाता’ से संपर्क [ कर सकती हैं। पीड़ित के लिए एक ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क कानून का पहला बिंदु है। संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता I उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं। प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती है । ‘सेवा f प्रदाता’ एक ऐसा संगठन है जो महिलाओं की सहायता करने के रे लिए काम करता है और इस कानून के तहत पंजीकृत है। पीड़ित र सेवा प्रदाता से उसकी शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा / सहायता प्राप्त कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती हैद्यभारत में सभी पंजीकृत सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं का एक डेटाबेस यहाँ उपलब्ध है। सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता है आप मजिस्ट्रेट – फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकती हैं, किंतु किस क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट से सम्पर्क करना है यह आपके और प्रतिवादी के निवास स्थान पर निर्भर करता है द्य 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अमूमन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती हैद्य
धारा 5 ‘यदि धरेलू हिंसा की कोई सूचना किसी पुलिस अधिकारी या संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गयी है तो उनके द्वारा पीड़िता को जानकारी देनी होगी कि :- (
- क) उसे संरक्षण आदेश पाने का
- ख) सेवा प्रदाता की सेवा उपलब्धता
- (ग) संरक्षण अधिकारी की सेवा की उपलब्धता
- (घ) मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का
- (ङ) परिवाद – पत्र दाखिल करने का अधिकार प्राप्त हैं । पर संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस को कार्रवाई करने से यह प्रावधान नहीं रोकता है।
धारा 10 सेवा प्रदाता, जो नियमत: निबंधित हो, वह भी मजिस्ट्रेट या संरक्षा अधिकारी को घरेलू हिंसा की सूचना दे सकता है।
धारा 12 पीड़िता या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा के बारे में या मुआवजा या नुकासान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। इसकी सुनवाई तिथि तीन दिनों के अन्दर की निर्धारित होगी एवं निष्पादन 60 दिनों के अन्दर होगा ।
धारा 14 – मजिस्ट्रेट पीड़िता को सेवा प्रदात्ता से परामर्श लेने का निदेश दे सकेगा ।
धारा 16 – पक्षकार ऐसी इच्छा करें तो कार्यवाही बंद कमरे में हो सकेगी।
धारा 17 तथा 18 पीड़िता को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा और कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकेगा । उसके पक्ष में संरक्षण आदेश पारित किया जा सकेगा ।
धारा 19 पीड़िता को और उसके संतान को संरक्षण प्रदान करते हुए संरक्षण देने का स्थानीय थाना को निदेश देने के साथ निवास आदेश एवं किसी तरह के भुगतान के संबंध में भी आदेश पारित किया जा सकेगा और सम्पत्ति का कब्जा वापस करने का भी आदेश दिया जा सकेगा ।
धारा 20 तथा 22 वित्तीय असंतोष – पीड़िता या उसके संतान को घरेलू हिंसा के बाद किये गये खर्च एवं हानि की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट निदेश दे सकेगा तथा भरण-पोषण का भी आदेश दे सकेगा एवं प्रतिकर आदेश भी दिया जा सकता है।
धारा 21 अभिरक्षा आदेश संतान के संबंध में दे सकेगा या संतान से भेंट करने का भी आदेश मैजिस्ट्रेट दे सकेगा।
धारा 24 पक्षकारों को आदेश की प्रति निःशुल्क न्यायालय द्वारा दिया जाएगा। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2006
नियम 9 आपातकालीन मामलों में पुलिस की सेवा की मांग संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा की जा सकती है।
नियम 13 परामर्शदाताओं की नियुक्ति संरक्षण अधिकारी द्वारा उपलब्ध सूची में से की जायेगी । | स्त्रोत- महिला व बाल कल्याण मंत्रालय, न्याय पोर्टल