भक्ति आंदोलन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए ?
भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत NCERT GK Notes
(UPSC/IAS, IPS, PSC, Vyapam, Bank, Railway, RI, SSC एवं अन्य सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए उपयोगी )
रामानुजाचार्य ( 11वीं सदी )
इन्होंने राम को अपना आराध्य माना। इनकाजन्म 1016 ई. में मद्रास (आधुनिक चेन्नई) के निकट पेरूम्बर (पेरंबूर) नामक स्थान पर हुआ था। 1137 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी। रामानुजाचार्य ने वेदांत में प्रशिक्षण अपने गुरु कांचीपुरम के यादव प्रकाश से प्राप्त किया था।
रामानंद
रामानंद का जन्म 1299 ई. में प्रयाग में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। इन्होंने सभी जाति एवं धर्म के लोगों को अपना शिष्य बनाकर एक प्रकार से जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया। इन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं सीता की आराधना को समाज के समक्ष रखा। इनके प्रमुख शिष्य थे- कबीर (जुलाहा), रैदास (हरिजन), धन्ना (जाट), सेना (नाई), पीपा (राजपूत)।
कबीर
मध्यकालीन संतों में कबीरदास का साहित्यिक एवं ऐतिहासिक योगदान नि:संदेह अविस्मरणी है। एक महान समाज सुधारक के रूप में उन्होंने समाज में व्याप्त हर तरह की बुराईयों के खिलाफ संघर्ष किया, जिनमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली। कबीर ने ईश्वर प्राप्ति हेतु शुद्ध प्रेम, पवित्रता एवं निर्मल हृदय की आवश्यकता बतायी। निर्गुण भक्ति धारा से जुड़े कबीर ऐसे प्रथम भक्त थे जिन्होंने संत होने के बाद भी पूर्णतः गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया। कबीर ने अपना संदेश अपने दोहों के माध्यम से जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत किया। इनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाये। कबीर सुल्तान सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
रैदास
ये जाति से चर्मकार थे। ये रामानंद के बारह शिष्यों में एक थे। इनके पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरबिनिया था। ये जूता बनाकर जीविकोपार्जन करते थे। मीराबाई ने इन्हें अपना गुरु माना। इन्होंने रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।
धन्ना
इसका जन्म 1415 ई. में एक जाट परिवार में हुआ था। राजपुताना से बनारस आकर ये रामानंदके शिष्य बन गये। कहा जाता है कि इन्होंने भगवान की मूर्ति को हठात् भोजन कराया था।
दादू दयाल
ये कबीर के अनुयायी थे। इनका जन्म 1554 ई. में अहमदाबाद में हुआ था। इनका सम्बन्ध धुनिया जाति से था। सांभर में आकर इन्होंने ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की। मुगल सम्राट अकबर ने धार्मिक चर्चा के लिए इन्हें एक बार फतेहपुर सीकरी बुलाया था। इन्होंने निपख आंदोलन की शुरुआत की।
गोस्वामी तुलसीदास
इनका जन्म उत्तरप्रदेश के बांदा जिले में राजापुर गाँव में 1554 ई. में हुआ था। इन्होंने रामचरित मानस की रचना की।
मीराबाई
मीराबाई का जन्म 1498 ई० में मेड़ता जिले के चौकारी (Chaukari) ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्न सिंह राठौर था। इनका विवाह 1516 ई० में राणा सांगा के बड़े पुत्र युवराज भोजराज से हुआ था। अपने पति के मृत्यु के उपरांत, ये पूर्णत: धर्मपरायण जीवन व्यतीत करने लगीं। इन्होंने कृष्ण की उपासना प्रेमी एवं पति के रूप में की। इनके भक्ति गीत मुख्यत: ब्रजभाषा और आंशिक रूप से राजस्थानी में लिखे गये हैं तथा इनकी कुछ कविताएँ राजस्थानी में भी है। इनकी मृत्यु 1546 ई० में हो गयी।
चैतन्य स्वामी
चैतन्य का जन्म 1486 ई. में नदिया (पश्चिम बंगाल) के मायापुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र एवं माता का नाम शची देवी था। चैतन्य वास्तविक नाम विश्वंभर मिश्र था। पाठशाला में चैतन्य को निमाई पंडित कहा जाता था। चैतन्यु महाप्रभु ने गोसाई संघ की स्थापना की और साथ ही संकीर्तन प्रथा को जन्म दिया। उनके दार्शनिक सिद्धान्त को अचिंत्य भेदाभेदवाद के नाम से जाना जाता है। संन्यासी बनने के बाद ये बंगाल छोड़कर पुरी चले गये, जहाँ उन्होंने दो दशक तक भगवान जगन्नाथ की उपासना की। चैतन्य का प्रभाव बंगाल के अतिरिक्त बिहार एवं ओडिशा में भी था। चैतन्य के शिष्य इन्हें गौरांग महाप्रभु के नाम से पूजते है। चैतन्य चरितामृत कृष्णराज कविराज द्वारा लिखित चैतन्य की जीवनी है।
गुरु नानक
कबीर के बाद तत्कालीन समाज को प्रभावित करने वालों में नानक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने बिना किसी वर्ग पर आघात किये ही उसके अंदर छिपे कुसंस्कारों को नष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने धर्म के बाह्य आडंबर, जात-पात, छूआछूत, ऊँच-नीच, उपवास, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास, बहुदेववाद आदि की आलोचना की। हिन्दू-मुस्लिम एकता, सच्ची ईश्वर भक्ति एवं सच्चरित्रता पर विशेष बल दिया। उनका दृष्टिकोण विशाल मानवतावादी था। उनके उपदेशों को सिक्ख पंथ के पवित्र ग्रन्थ गुरुग्रन्थ साहब में संकलित किया गया है।
सूफी आंदोलन
- सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द सफा से हुई, जिसका अर्थ है पवित्रता और विशुद्धता अर्थात् वे लोग जो आचार-विचार से पवित्र थे सूफी कहलाये।
- भारत में सूफी मत का प्रवेश तो इस्लाम धर्म के साथ ही हुआ, लेकिन इसका विकास तुर्की शासन की स्थापना के बाद ही हुआ।
- वहादतुल-उल-वुजूद अथवा आत्मा-परमात्मा की एकता का सिद्धान्त सूफी मत का आधार था।
- सूफी संतों से शिष्यता ग्रहण करने वाले लोग मुरीद कहलाते थे।
- सूफी जिन आश्रमों में निवास करते थे, उन्हें खनकाह या मठ कहा जाता था।
- भारत में सूफी धर्म कई सम्प्रदायों में बँटा हुआ था जिसे सिलसिला कहा जाता था।
ये सिलसिले दो वर्गों में विभाजित थे
- बा-शरा- वे जो इस्लामी विधि (शरा) का अनुकरण करते थे। |
- बे-शरा- वे जो इस्लामी विधि से नहीं बँधे हुए थे।
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