छत्तीसगढ़ में मजदूर आंदोलन CG Majdoor Andolan GK

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छत्तीसगढ़ मजदूर आंदोलन

भारत में वर्ष 1853 ई० में रेलवे का निर्माण आरंभ होने के साथ ही भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत हुई। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में 1890 ई० में सी० पी० मिल्स की स्थापना के साथ औद्योगीकरण की शुरुआत मानी जाती है। इस औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप दो नये वर्गों का उदय हुआ—पूँजीपति व मजदूर वर्ग । इन दोनों वर्गों के बीच बहुत अधिक असमानता थी। सरकारी नीतियां भी मजदूरों के हितों के अनुकूल नहीं थीं।
फलतः मजदूरों को एक ही साथ साम्राज्यवादी राजनीतिक व्यवस्था और पूँजीपतियों के दोहरे शोषण का शिकार होना पड़ा। इसलिए मजदूरों को अपने हितों की सुरक्षा के लिए आंदोलन करने पड़े। सी० पी० मिल्स की स्थापना : 1890 ई० 23 जून, 1890 ई० को

बी.एन. सी. मिल मजदूर आंदोलन राजनांदगांव

सी० पी० मिल्स की स्थापना छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में राजा बलराम दास के शासन काल में हुई। इस मिल के निर्माण का कार्य इंग्लैंड के मैकबेथ ब्रदर्स ने किया।
यह मिल राजनांदगांव स्टेशन के निकट स्थित है। मिल का निर्माण कार्य 8 वर्षों में पूरा हुआ। मिल द्वारा उत्पादन का कार्य 1894 ई० में प्रारंभ हुआ। मिल के संचालक बोर्ड के अध्यक्ष राजनांदगांव रिसायत के तत्कालीन शासक बलराम दास थे। मिल के संचालक पद पर केदारनाथ बागची को नियुक्त किया गया ।
_ कुछ समय तक इस कॉटन मिल का कारोबार ठीक चला पर बाद में व्यवस्था करनेवालों की अनुभवहीनता के कारण इसे घाटा उठाना पड़ा। फलस्वरूप वर्ष 1897 ई० में इसे मेसर्स शॉ वालीस कंपनी, कलकत्ता के हाथों बेच दिया गया। नये खरीददार ने इसका नाम बदलकर बंगाल नागपुर कॉटन (बी० एन० सी०) मिल्स कर दिया।

 छत्तीसगढ़ प्रथम मजदूर आंदोलन : 1920 ई०

_चूँकि छत्तीसगढ़ का औद्योगिक केंद्र राजनांदगाँव था इसलिए मजदूर आंदोलन का प्रमुख केन्द्र भी वही बना । यहाँ मजदूर आंदोलन को शुरू करने का श्रेय ठाकुर प्यारेलाल सिंह को है। इस काम में उन्हें शिवलाल मास्टर और शंकर राव खरे का सहयोग मिला। असहयोग आंदोलन के दौरान 1920 ई० में बी० एन० सी० मिल्स के मजदूरों ने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में हड़ताल कर दी। यह हड़ताल लगभग 36 दिनों तक चली। इन मजदूरों को मिल में प्रतिदिन 12-13 घंटे कार्य करना पड़ता था।
अतः मजदूरों ने इस अन्याय के खिलाफ असंतोष जाहिर करते हुए ठाकुर साहब के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ किया। यह आंदोलन ठाकुर साहब के कुशल नेतृत्व के कारण सफल रहा। अधिकारियों को मिल मजदूरों के समक्ष झुकना पड़ा। मजदूरों के कार्य करने के घंटे कम कर दिए गए।
मजदूरों की मांग तो पूरी हो गई, पर ठाकुर साहब को इस आंदोलन का नेतृत्व करने की कीमत चुकानी पड़ी। दण्डस्वरूप उन्हें राजनांदगाँव रियासत की सीमा से निष्कासित कर दिया गया। इस आदेश के खिलाफ ठाकुर साहब ने तत्कालीन गवर्नर के पास शिकायत की। गवर्नर ने इस आदेश को रद्द कर दिया।

 छत्तीसगढ़ द्वितीय मजदूर आंदोलन : 1924 ई०

वर्ष 1924 ई० में ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में राजनांदगाँव के मजदूरों ने दूसरी बार आंदोलन किया। इस बार बी० एन० सी० मिल्स के मजदूरों ने लंबी हड़ताल की। इस लंबे संघर्ष के दौरान कई गिरफ्तारियाँ हुईं। पुलिस की दमनकारी नीति के कारण वहाँ के मजदूर बार-बार उत्तेजित होते रहे ।
ठाकुर साहब उन्हें संयमित करने का प्रयास करते रहे। हड़ताल की अवधि में मजदूरों ने एक जातीय भोज का आयोजन किया। इसी समय रियासत के एक सिपाही ने वहाँ जूता पहनकर उपस्थित हो, भोजन के बर्तनों को ठोकर मारी, जिससे मजदूरों में उत्तेजना उत्पन्न हो गई पर मजदूरों ने अपने को नियंत्रित रखते हुए इसकी शिकायत रियासत के अधिकारी से की।
नाराज मजदूर जब लौट रहे थे तब मार्ग में उन्हें रियासत का एक भ्रष्ट बाबू गंगाधर राव दिखाई पड़ा । किसी एक मजदूर ने उसे एक थप्पड़ मार दिया । इस घटना के कारण पुलिस ने 13 प्रमुखों को हिरासत में ले लिया। इससे मजदूरों में रोष फैल गया। शासन की ओर से धारा 144 लगा दी गई। सभाएं करना प्रतिबंधित कर दिया गया।
बंदी मजदूरों के खिलाफ मुकदमा चलने लगा। मजदूरों ने इस कार्यवाही के खिलाफ असंतोष प्रकट करते हुए न्यायालय को चारों तरफ से घेर लिया। ठाकुर साहब ने उत्तेजित भीड़ को शांत किया। जब गिरफ्तार मजदूरों को जेल ले जाया जा रहा था तब उनके रिश्तेदारों और मित्रों ने हमला कर उन्हें छुड़ा लिया।
किन्तु बाद में पुलिस ने उन्हें फिर से पकड़ लिया। एक व्यक्ति के न मिलने पर पुलिस ने ठाकुर साहब के मकान को चारों तरफ से घेर लिया। जब इसकी सूचना जनता को मिली तब वे क्रुद्ध होकर पोलिटिकल एजेण्ट का पीछा करने लगे। शासन ने बल प्रयोग करते हुए गोली चलाने का आदेश दिया।
एक मजदूर मारा गया और 12 घायल हुए। ठाकुर साहब ने इस घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए इसकी शिकायत गवर्नर से की। पर शासन ने इसके लिए ठाकुर साहब को ही दोषी करार दिया और उन्हें रियासत से बाहर चले जाने का आदेश दिया। राजनांदगाँव से निष्कासित किए जाने के बाद ठाकुर साहब 1925 ई० में रायपुर चले गए और वहीं रहने लगे।

 छत्तीसगढ़ तृतीय मजदूर आंदोलन : 1937 ई०

राजनांदगाँव के मजदूरों ने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के मार्गदर्शन में वर्ष 1937 ई० में एक बार फिर आंदोलन किया। बी० एन० सी० मिल्स के मालिकों ने मजदूरों के वेतन में 10% की कटौती कर दी। इससे मजदूरों में गहरा असंतोष पनपा और वे हड़ताल की तैयारी करने लगे। मिल मालिकों ने मजदूरों के संगठन को तोड़ने का प्रयास किया ।
उधर वे ठाकुर साहब से समझौता कराने के लिए भी बातचीत करते रहे, पर ठाकुर साहब मजदूरों के हित में अड़े रहे। राजनांदगाँव रेलवे स्टेशन के विश्राम-घर में रहकर वे मजदूरों की हड़ताल का संचालन करते रहे। अन्ततः अधिकारियों को झुकना पड़ा और में रुइकर के माध्यम से संपन्न समझौते को स्वीकार करने के लिए बाध्य हुए। पर यह समझौता मजदूरों के लिए हितकारी सिद्ध नहीं हुआ।
रुइकर के नेतृत्व में हुए समझौते के अनुरूप 600 मजदूर बेकार हो गए। लगभग 11 महीने तक कपड़े का उत्पादन बंद रहा। इससे मजदूरों का धैर्य टूट गया। अन्ततः उन्होंने ठाकुर साहब के पास आकर समस्या के समाधान हेतु निवेदन किया। ठाकुर साहब ने नया समझौता प्रस्तुत किया,
से समझौता बोर्ड ने अक्षरशः स्वीकार कर लिया। इसके अनुसार निकाले गए मजदूरों को वापस नौकरी में ले लिया गया। ठाकुर साहब का निष्कासन आदेश भी वापस ले लिया गया।

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