गांधीजी की द्वितीय छत्तीसगढ़ यात्रा : 22-28 नवम्बर, 1933 ई०
गांधीजी की द्वितीय छत्तीसगढ़ यात्रा हरिजनोद्धार से संबंधित थी। उनकी इस यात्रा में कुमारी मीरा बेन [मूल नाम- मैडालिन स्लेड (अंग्रेज)], जमनालाल बजाज की पुत्री, ठक्कर बापा (झाबुआ के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी) एवं महादेव देसाई (निजी सचिव) साथ थे।
उन्होंने धमतरी, भाटापारा, दुर्ग, बिलासपुर आदि स्थानों की यात्राएं की। रायपुर आने पर आमानाका स्कूल में उनका स्वागत किया गया। उन्हें 7,400 रु० की राशि भेंट की गई।
उन्होंने सतनामी आश्रम और अनाथालय का भी अवलोकन किया। रायपुर जिले में गांधीजी के इस प्रवास से प्रभावित होकर पं० राम दयाल तिवारी ने ‘गांधी मीमांसा’ नामक ग्रंथ लिखा। छत्तीसगढ़ में हरिजनोद्धार का कार्य पहले से ही चल रहा था। यह कार्य वर्ष 1917 ई० में पं० सुंदरलाल शर्मा द्वारा आरंभ किया गया था। इसे जानकर गांधीजी बहुत खुश हुए और उन्होंने शर्माजी को अपना गुरु कहा।
लोगों में आंदोलन के प्रति उत्साह में कमी देखकर गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को मई 1934 ई० के पटना बैठक में वापस ले लिया।
इसके बाद गांधीजी कांग्रेस से अलग हो गए तथा अछूतोद्धार कार्यक्रम में पूरा समय देने लगे। आंदोलन की समाप्ति पर कांग्रेस का रुझान पुनः व्यवस्थापिकाओं की ओर हो गया। केंद्रीय नेतृत्व का अनुसरण छत्तीसगढ़ के नेताओं ने किया।