Chhattisgarh Rowlatt Act
भारत में राजद्रोहात्मक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए न्यायाधीश सिडनी लागलेट की अध्यक्षता में गठित राजद्रोह समिति (Sedition Committee) की रिपोर्ट के टमआधार पर 21 मार्च, 1919 ई० को रौलेट एक्ट पारित किया गया।
इसे ‘काले कानून’ या की संज्ञा दी गई। चूँकि इस कानून के विरुद्ध कोई सुनवाई नहीं थी इसलिए इसके बारे में द कहा गया ‘न अपील, न वकील, न दलील’। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़ताले में नई और जनसभाएँ आयोजित की गईं।
पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेतृत्व में प्रदर्शन वए। रायपुर में कांग्रेस और होमरूल लीग की बैठक हुई। बिलासपुर में मुस्लिम लीग बका अधिवेशन हुआ जिसमें इस कानून की निंदा की गई। इसी क्रम में 13 अप्रैल, 1919 ना को अमृतसर में जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड घटित हुआ।
छत्तीसगढ़ के धमतरी में में गई, 1919 ई० में गणेश कृष्ण (दादा साहब खापर्डे) के सभापतित्व में द्वितीय तहसील , राजनैतिक परिषद् की बैठक हुई। इस बैठक में रायपुर से माधवराव सप्रे, पं० शुक्ल, की लाखे, महन्त लक्ष्मी नारायण, महन्त पुरुषोत्तम दास आदि; बिलासपुर से राघवेन्द्र राव, कुंज बिहारी अग्निहोत्री, पं० द्वारका प्रसाद तिवारी आदि शामिल हुए। इन नेताओं ने जालियाँवाला बाग हत्याकांड की भर्त्सना की और अंग्रेजी शासन के इस दुष्कृत्य पर रोष प्रकट किया।