ब्रिटिश संरक्षणाधीन मराठा शासन : 1818-30 ई०
नागपुर के शासक अप्पा साहब और अंग्रेजी
22 मार्च, 1816 ई० को नागपुर के भोंसला शासक रघुजी II की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद राज्य में सत्ता संघर्ष छिड़ गया। दो प्रतिद्वन्द्वी दल उभरकर सामने आये। एक दल के नेता बाँका बाई और धरमजी थे, जो रघुजी II के पुत्र परसोंजी भोंसला को राज्य की गद्दी सौंपना चाहते थे। दूसरे दल के नेता अप्पा साहब थे, जो परसोंजी भोंसला के चाचा थे।
रघुजी II के पुत्र परसोंजी भोंसला नागपुर राज्य के नये शासक बनाये गए जबकि शासन संचालन के लिए अप्पा साहब रीजेण्ट नियुक्त किये गए। 55 रीजेण्ट के पद पर अप्पा साहब की नियुक्ति भावी घटनाओं के संदर्भ में नागपुर राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना साबित हुई।
अप्पा साहब महत्त्वाकांक्षी और स्वार्थी व्यक्ति थे। गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्स ने नागपुर राज्य में ब्रिटिश प्रभाव के विस्तार हेतु अप्पा साहब का साथ देने का निश्चय किया।
अपनी व्यक्तिगत इच्छा की पूर्ति हेतु अप्पा साहब राष्ट्रीय हित की बलि देने को तैयार हो गए। फलस्वरूप 27 मई, 1816 ई० को अंग्रेज और अप्पा साहब के बीच सहायक संधि हुई, जो निश्चित रूप से अंग्रेजों के हित में थी।
संधि की शर्तों के अनुसार अप्पा साहब ने अंग्रेजों को प्रति वर्ष 7 लाख रुपये देना एवं नागपुर राज्य में ब्रिटिश सेना रखना मंजूर किया। इस संधि की घोषणा नागपुर राजदरबार में 9 जून, 1816 ई० को की गई।
अन्ततः यह सहायक संधि अप्पा साहब के पतन का कारण बनी। इस संधि के कारण नागपुर राज्य में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया।
मालकम लिखता है : ‘भारतवर्ष की तत्कालीन परिस्थितियों में कोई भी घटना इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी नागपुर राज्य से अंग्रेजों द्वारा की गई सहायक संधि’।
10 फरवरी, 1817 ई० को भोंसला शासक परसोजी भोसला की रहस्यमय ढंग से अचानक मौत हो गई तब यह संदेह किया गया कि अप्पा साहब ने उनको जहर देकर मरवा डाला। परसोंजी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी काशी बाई सती हुई। 21 अप्रैल, 1817 ई० को अप्पा साहब नागपुर राज्य के उत्तराधिकारी बने। राज्य में अपनी सिथति को सुरक्षित पाकर अप्पा साहब मनमानी पर उतर आये।
अंग्रेजों की इच्छा के विपरीत अप्पा साहब ने अंग्रेज विरोधी पेशवा बाजीराव II से अपना संबंध स्थापित किया । अप्पा साहब ने 14 नवम्बर, 1817 ई०को पेशवा से ‘सेना साहब’ का खिताब भी प्राप्त किया। अप्पा साहब के इन कार्यों को अंग्रेजों ने सहायक संधि की शर्तों का उल्लंघन माना।
पेशवा बाजीराव II ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया, जिसके कारण तृतीय आंग्लमराठा युद्ध (1817-18) आरंभ हुआ। सभी मराठा सरदार प्रतिशोध की भावना से ग्रसित थे और अंगेजों के साथ पूर्व में किए गए अपमानजनक संधियों से मुक्ति पाना चाहते थे।
इस अवसर का लाभ उठाकर अप्पा साहब ने भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिया। सीताबल्डी में अंग्रेज और अप्पा साहब के बीच लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अप्पा साहब की हार हुई। 15 दिसम्बर, 1817 ई० को अप्पा साहब को अपमानजनक संधि करनी पड़ी ।
संधि की शर्तों के अनुसार अप्पा साहब को यह स्वीकार करना पड़ा कि अंग्रेज विरोधी नीतियों के कारण नागपुर राज्य को अंग्रेजों की कृपा पर आश्रित कर दिया है और अब उन्हें अंग्रेजों की कृपा के अनुसार कार्य करना पड़ेगा। अप्पा साहब को यह भी स्वीकार करना पड़ा कि उन्हें अब ब्रिटिश रेसीडेन्सी में आकर निवास करना पड़ेगा। 6 जनवरी, 1818 ई० को अप्पा साहब और नागपुर के अंग्रेज रेसीडेन्ट जेनकिन्स के बीच अंतरिम समझौता हुआ।
समझौते की शर्त थीं—
- (i) पक्की संधि पर गवर्नर जनरल की स्वीकृति आने तक अप्पा साहब को उनकी गद्दी पर पुनः बहाल किया जाय।
- (ii) भोंसला शासक राज्य के उत्तरी भाग ग्वालिगढ़, सरगुजा, बरार और जबलपुर का परित्याग करे ।
- (iii) ब्रिटिश सेना की सुरक्षा में रहकर राजा रेसीडेन्ट के निर्देशानुसार राज्य के शासन का संचालन करे। यह समझौता अप्पा साहब के पतन और नागपुर राज्य में अंग्रेजी प्रभुत्व की स्थापना का संकेत था।
इस समझौते से आहत अप्पा साहब ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने का निश्चय करके राज्य के गोंड राजाओं को उकसाना आरंभ किया। उनके द्वारा किए जाने वाले अंग्रेज विरोधी कार्य से नाराज होकर अंग्रेजों ने 15 मार्च, 1818 ई० को अप्पा साहब को राजमहल में कैद कर लिया।
3 मई, 1818 ई० को सैनिक पहरे में इलाहाबाद के लिए रवाना कर दिया । परन्तु मार्ग में जबलपुर के निकट ब्रिटिश अधिकारियों को चकमा देकर ज्ञान अप्पा साहब महादेव पर्वत की ओर भागने में सफल हो गए।
भागकर उन्होंने गोंड़ों के यहाँ शरण ली। कुछ समय बाद वे असीरगढ़ होते हुए लाहौर पहुँचे । अंत में 44 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1840 ई० में उनकी मृत्यु हो गई।
ब्रिटिश संरक्षण की स्थापना : 26 जून, 1818 ई०
31 मई, 1818 ई० को नागपुर स्थित ब्रिटिश रेसीडेन्ट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य के संबंध में एक घोषणा की :
(i) इस घोषणा में अप्पा साहब को भगोड़ा कहा गया और उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ कर लाने वाले या उसके संबंध में सूचना देने वाले को 2 लाख रुपये नकद इनाम और 10,000 रुपये मूल्य की जागीरदारी प्रदान करने की घोषणा की गई।
(ii) (ii) रघुजी II के अल्पवयस्क पोते रघुजी III को नागपुर राज्य का नया शासक बनाया जाएगा।
(iii) रघुजी III के वयस्क होने तक राज्य का प्रशासन ब्रिटिश संरक्षण (नियंत्रण) में रखा जाएगा। इस घोषणा के अनुरूप 26 जून, 1818 ई० को रघुजी III को नागपुर राज्य (नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित भू-भाग को छोड़कर) का उत्तराधिकारी बनाया गया।
इस प्रकार, अंग्रेजों ने नागपुर के शासक रघुजी III की अल्पवयस्कता की आड़ में नागपुर राज्य का शासन अपने हाथों में ले लिया। फलस्वरूप नागपुर के भोंसला के शासनाधीन क्षेत्र छत्तीसगढ़ का शासन भी ब्रिटिश संरक्षण में आ गया। तदनुसार ब्रिटिश अधीक्षक एडमण्ड को छत्तीसगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया ।
नागपुर स्थित ब्रिटिश रेसीडेन्ट जेनकिन्स को केन्द्र सरकार से यह स्पष्ट आदेश दिया गया कि मराठा काल में राज्य शासन में जो परम्पराएँ थीं, उनके प्रतिकूल वे कोई परिवर्तन न करें। ब्रिटिश संरक्षण का उद्देश्य वहाँ के शासन को व्यवस्थित और नियमित करने तक ही सीमित होना चाहिए।
प्रशासन की सुविधा के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र को 5 सूबों-नागपुर, भंडारा, चाँदा, छिन्दवाड़ा और छत्तीसगढ़ में विभाजित किया गया और प्रत्येक सूबे के मुख्यालय में एक-एक ब्रिटिश अधीक्षक रखा गया। PI ब्रिटिश रेसीडेन्ट के रूप में जेनकिन्स नागपुर में काफी समय तक रहे।
वास्तव में ब्रिटिश शासन द्वारा छत्तीसगढ़ के लिए की जानेवाली नवीन व्यवस्था के वे सूत्रधार थे। 12 अप्रैल, 1827 ई० को जेनकिन्स के उत्तराधिकारी के रूप में विल्डर नागपुर के ब्रिटिश रेसीडेन्ट बनाये गए।