छत्तीसगढ़ में मौर्य काल Maurya Period in Chhattisgarh
मौर्य काल (323 ई०पू० -184 ई०पू०) के दीरान यह क्षेत्र मीर्यवंशी शासकों के अधीन था। मौर्य सम्राट अशोक ने दक्षिण कोशल की राजधानी श्रावस्ती में स्तूप का निर्माण करवाया था ।मौर्य काल के दो अभिलेख सरगुजा जिले से प्राप्त हुए हैं। सरगुजा जिले के रामगढ़ के निकट कबरा पहाड़ और सिंहनपुर की गुफाओं सीतावोंगरा और जोगीमारा से प्राप्त मौर्यकालीन अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। इस अभिलेख में सुतनुका नामक देवदासी एवं उसके प्रेमी देवदत्त का उल्लेख है।इन गुफाओं में सांस्कृतिक आयोजन के मंचन के लिए रंगशाला (नाट्यशाला) बनाए गए थे। सीताबोंगरा की नाट्यशाला भारत की सबसे प्राचीन नाट्यशाला मानी जाती है। रायपुर जिले के तुरतुरिया से बौद्ध भिक्षुणियों का एक विहार मिला है। इस विहार में भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा आज भी विद्यमान है ।
मौर्यकालीन आहत सिक्के (Punch-Marked Coins) मुख्यतः अकलतरा, ठठारी, बार एवं बिलासपुर से प्राप्त हुए हैं। इनके अलावे छत्तीसगढ़ में मिट्टी के परकोटों वाले अनेक गढ़ मिले हैं, जिनका संबंध मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेख में उल्लिखित आटविक राज्य से जोड़ा जाता है। आटविकों की अपनी सामाजिक व्यवस्था थी, जिसके अवशेष को आज भी बस्तर क्षेत्र के आदिवासियों की सामाजिक व्यवस्था में देखा जा सकता है।