छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख लोकगीत
डॉक्टर कृष्णदेव उपाध्याय के अनुसार “लोकगीतों को लोकसाहित्य की आत्मा” कहते है ।और इसी गीत की परिणीति अनुसार नृत्य का उद्गम माना गया है । वस्तुतः इसका उद्भव नगर और ग्राम के संयुक्त साधारण जन के माध्यम से होता है । वे हमारे जीवन के हर मार्मिक क्षण, हमारे दुख सुख के प्रत्येक स्पंदन के साक्षी होते है । जिसमे उल्लास, पीड़ा, हृदय एवं समस्त जीवन व्यक्त हुआ होता है, जिसमें वह जीवन और संस्कृत की सम्पूर्ण व्याख्या, परंपरा एवं साहित्य का हाथ पकड़कर चलती है ।
लोकगीतों का महत्व लोकगीतों में लोक का हृदय झलकता है अतः इसमें लोकजीवन का जितना सहज और यथार्थ चित्रण मिलता है उतना अन्यत्र दुर्लभ है । जहां जनता/लोक का धर्म, आस्थाएं मान्यताएं, नैतिकता, धर्म, रहन-सहन, जीवन जीने के ढंग, जीवन के शाश्वत मूल्य अर्थात उनकी सारी संस्कृति का प्रतिबिंब लोकगीतों के दर्पण में उभर आता है साथ ही हृदय का सामान्य स्वरूप पहचानने के लिए पुराने प्रचलित ग्राम गीतों की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है । छत्तीसगढ़ के लोकगीतों को सात(7) महत्वपूर्ण भागों में बांटा गया है।
छत्तीसगढ़ का सम्पूर्ण सामान्य ज्ञान Cg Question Answer: Click Now
संस्कार के आधार पर
- सोहर गीत
- मड़वा गीत
- परधौनी गीत
- चुलमाटी गीत
- तेलहा गीत
- भाँवर गीत
- टिकावन गीत
- भड़ौनी गीत – वर पक्ष के द्वारा परधौनी के बाद वधु पक्ष द्वारा हास्य मनोरंजन का गीत ।
- पठौनी गीत – संपूर्ण विवाह गीत उत्सव के आधार पर
- फाग गीत
- धनकुल गीत
- तीजा गीत
- भोजली गीत
- देवार गीत
- छेरछेरा गीत –
- छेरता गीत(पुरुष)
- तारा गीत (महिला) दोनों गीत बस्तराँचल में
- ककसार गीत
- करमा गीत
- सरहुल (उरांव)
- बैगानी करमा करमा नृत्य गीत बस्तर में प्रयोग नही किया जाता है ।
- गौरा – गौरी गीत- गोंद जनजाति द्वारा कार्तिक प्रतिपदा के दिन
- राउत गीत
- सुआ गीत धर्म और पूजा के आधार पर
- गौरा-गौरी गीत
- जंवारा गीत
- भोजली गीत
- धनकुल गीत
- माता गीत
- नागपंचमी गीत
- सरहुल गीत ऋतु/ऋतुओं के आधार पर
- बारहमासी गीत
- सवनाही गीत
- फागुन गीत/फाग गीत मनोरंजन के आधार पर
- करमा गीत
- डंडारी गीत
- नचौनी गीत/नाचा गीत
- ददरिया गीत
- भरथरी गीत
- बांस गीत
- ढोला-मारु गीत अन्य स्फुटिक गीत
- पंथी गीत
- कबीर पंथी गीत
- सामान्य भजन लोरियां या बच्चों के लिए
- लोरियां
- खुड़वा गीत/खुड़आ गीत(फवउद्दी)
- काऊ-माऊ गीत
- बैठे फुगड़ी गीत
- खड़े फुगड़ी गीत लोक गीत,
लोक जीवन की लिखित व्यावहारिक रचनाएं हैं, जो परंपरा से प्रचलित एवं प्रतिष्ठित होती हैं । लोकगीतों के रचयिता प्रायः अज्ञात होते हैं । वस्तुतः यह गीत समूहगत रचनाशीलता का परिणाम होते हैं एवं मौखिक परंपरा में जीवित रहकर युगों की यात्रा करते हैं । यह गीत कविताओं पर वो संस्कारों के अतिरिक्त धर्म और श्रम से भी संबंधित होते हैं। वस्तुतः लोक मन को स्पंदित होकर गुनगुनाने के लिए किसी बंधन या नियम की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए यह संस्कृति के समग्र संवाहक होते हैं ।
छत्तीसगढ़ी लोकगीत श्रम और साधना के गीत हैं । छत्तीसगढ़ मूलतः लोकगीत और आख्यान की बोली है इसलिए पंडवानी, भरथरी, चंदैनी, ढोला मारू, बासगीत के साथ विभिन्न संस्कार गीत, पर्व त्यौहार, अनुष्ठान, बारहमासा, सुआ, ददरिया, बच्चों के खेल गीत धनकुल, लक्ष्मी जगार आदि लोकगीतों में लोग कविता और लोग स्वर की छवियां अंकित मिलती हैं । छत्तीसगढ़ के लोक गीतों की गायन शैली में छत्तीसगढ़ी पारंपरिक सांगीतिक विविधता भी मौजूद है ।
धर्म व पूजा गीत – गौरी गीत, माता सेवा गीत, भोजली के गीत, नाग पंचमी के गीत, जवारा गीत, धनकुल के गीत
रितु से संबंधित गीत – फाग गीत, सवनाही गीत, बारहमासी गीत
संस्कारों से संबंधित गीत – बिहाव गीत, सोहर गीत, पठौनी गीत
उत्सव के गीत – राउत नाचा के दोहे, सुआ गीत, छेरछेरा गीत
मनोरंजन के गीत – करमा गीत, नचारी गीत, डंडा गीत, ददरिया गीत, बांस गीत, देवार गीत
लोरियाँ व बच्चों के गीत – खेल गीत, बैठे गीत, फुगड़ी, खड़े फुगड़ी, डांडी-पोहा गीत
अन्य स्फुट गीत – भजन और पंथी लोकगीत तथा सतनामियों का कबीरपंथियों के पद
छत्तीसगढ़ का महिमा गीत
- अरपा पैरी के धार ,महानदी है अपार ,इन्द्रावती हा पखारय तोर पैंयाँ, महूँ पावे परंव तोर भुइयां, जय हो जय हो छत्तीसगढ़ी मैया
- लेखक – नरेंद्र देव वर्मा (अन्य प्रमुख रचना – मोला गुरु बनई लेते)
- 2 अप्रैल 2013 को छत्तीसगढ़ शासन ने अपनाया ददरिया गीत
- ददरिया छत्तीसगढ़ के लोकगीतों का राजा
- शाब्दिक अर्थ दर्द गीत है । श्रृंगार प्रधान प्रेम गीत है । बरसात ऋतु में फसल बोते समय गाया जाता है । स्त्री पुरुष द्वारा साथ साथ या अलग अलग जिलों में गाया जाता है ।
- ददरिया को दो दो पंक्ति के इस स्फूट गीत होते हैं, जो लोक गीत काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण है I
- जब स्त्री पुरुष गाते हैं तब यह सवाल जवाब के रूप में गाया जाता है ।
- ददरिया को उसके दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द अथवा स्वर को पकड़कर गाया जाता है, जिसे छोऱ कहते हैं ।
- प्रसिद्ध कलाकार – स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया, दिलीप षडंगी, केदार यादव ।