PM प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जीवनी हिंदी में
जन्मः17 सितंबर, 1950 जन्म-स्थानःवडनगर (गुजरात) प्रधानमंत्रीः26 मई, 2014 से जारी वडनगर गुजरात का प्राचीनतम नगर है। अमदाबाद से ११२ किलोमीटर एवं महेसाणा से ३४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस नगर का उल्लेख स्दंपुराण में भी मिलता है और यह नगर ‘मंदिरों व तालाबों की नगरी’ के नाम से भी मशहूर रहा है। कलापूर्ण एवं बारीक कारीगरी से सजा हुआ यहाँ का कीर्ति तोरण विश्वविख्यात है और वडनगर की पहचान भी।
जन्म एवं परिवार वडनगर की ऐसी पावन धरती पर १७ सितंबर, १९५० को ‘मोदी ओल्ड’ में नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ था। अपने माता-पिता की छह में से तीसरी संतान हैं नरेंद्र मोदी। बड़े भाई सोम, अमृत, फिर नरेंद्र, बहन वासंती, दो छोटे भाई प्रह्लाद और पंकज। प्रारंभिक शिक्षा नरेंद्र की
प्रारंभिक शिक्षा
सरकारी पाठशाला और फिर माध्यमिक शिक्षा ‘भगवताचार्य नारायणाचार्य हाई स्कूल’ में हुई। स्कूल से छूटकर नरेंद्र अपने पिता की चाय की दुकान पर पहुँच जाते और उनके काम में हाथ बँटाते। रेलवे स्टेशन करीब ही था। जैसे ही किसी ट्रेन के आने की आवाज आती, नरेंद्र चाय लेकर स्टेशन पर पहुँच जाते।
संगठन-क्षमता
नरेंद्र की संगठन-क्षमता स्कूल के दिनें से ही दिखाई देने लगी थी। स्कूल के अहाते में एक ओर की दीवार नहीं थी। विद्यालय प्रंधन के पास दीवार बनवाने के लिए पैसे नहीं थे। अपने स्कूल की सहायतार्थ धन इकट्ठा करने के लिए बालक नरेंद्र ने एक नाटक का आयोजन किया और उसके टिकटों से जमा हुए पैसों से स्कूल की दीवार बनवा दी।
अद्भुत साहसी
बचपन में तैरने का बहुत शौक था नरेंद्र को। वे शर्मिष्ठा झील में तैरने जाया करते थे। झील में मगरमच्छ रहते थे, पर नरेंद्र को उनसे तनिक भी डर नहीं लगता था-एक बार वहाँ भारी वर्षा हुई, झील में पानी ऊपर तक भर आया। मगरमच्छ स्वच्छंद होकर घूमने लगे। ऐसे में झील के बीच स्थित मंदिर की ध्वजा बदलना जोखिमपूर्ण कार्य था…। लेकिन बारह वर्षीय नरेंद्र तुंत तैयार हो गए और अपने दो साथियों के साथ झील में कूद पड़े, झील के किनारे खड़े गाँववासी मगरमच्छों को डराने, भगाने के लिए ढोल-नगाड़े पीटने लगे। नरेंद्र साथियों के साथ फुरती से तैरते हुए मंदिर तक पहुँचे और ध्वजा बदलकर सुरक्षित लौट आए।
पुस्तक-प्रेमी
नरेंद्र को पुस्तकों से बड़ा लगाव था। वे अपना खाली समय ज्यादातर वडनगर के पुस्तकालय में गुजारते थे। बचपन से ही नरेंद्र धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं। वे नित्य महादेव मंदिर जाते, मंदिर की परिक्रमा करते और जाप करने बैठ जाते थे। साल में दो बार नवरात्रों का व्रत पूरी आस्था के साथ आज भी रखते हैं। व्रत में वे केवल नीबू-पानी लेते हैं।
सेवा-कार्यों में संलग्नता
सितंबर १९५९ में तटबाँध टूट जाने के कारण सूरत में तापी नदी में बाढ़ आ गई। इसमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। लगभग पाँच सौ लोग मारे गए। राहत कार्य के लिए पैसे इकट्ठा करने थे। नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी सँभाली। अपने मित्रों के साथ मिलकर मेला देखने के लिए मिला एक-एक रुपया एकत्र किया और गाँव में प्रतिवर्ष लगनेवाले जन्माष्टमी के मेले में चाय का ठेला लगाया। उसमें जो भी आमदनी हुई, उसे बाढ़ राहत कोष में जमा करा दिया। नरेंद्र की माताजी हीरा बा घरेलू देशी दवाइयों की अच्छी जानकार हैं। यह उन पर ईश्वर का आशीर्वाद ही था। वे मरीजों को मुफ्त दवाइयाँ देती थीं। सुबह पाँच बजे से ही घर पर मरीजों की भीड़ इकट्ठी हो जाती थी। नरेंद्र माताजी की सहायता के लिए सुबह जल्दी उठ जाते। जनसेवा, राष्ट्रसेवा तो नरेंद्र के रोम-रोम में समाई हुई थी। १९६२ में भारत-चीन के बीच युद्ध चल रहा था। टेनों में बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों की आवाजाही हो रही थी। लोग जवानों की सेवा के लिए महेसाणा रेलवे स्टेशन की ओर जा रहे थे। घर से आज्ञा लेकर नरेंद्र भी उन लोगों के साथ स्टेशन पहुँच गए और सैनिकों को चाय-नाश्ता देने के सेवा-कार्य में लग गए। सैनिकों की सेवा करते हुए, तो कभी जवानों को लेकर आ रही ट्रेन का इंतजार करते हुए नरेंद्र की पूरी रात जागते हुए ही गुजर जाती थी।
संन्यास की ओर
धीरे-धीरे नरेंद्र संन्यास की ओर प्रवृत्त होने लगे। साधु-संतों की संगत करने लगे। यह सब देखकर घरवालों की चिंता बढ़ गई। एक दिन नरेंद्र घर से चुपचाप निकल गए। दो वर्ष संन्यास में रहकर वापस लौट भी आए और इधर-उधर भटकने लगे। फिर एक दिन एक रात घर में रहने के बाद नरेंद्र अपने चाचा के पास अमदाबाद चले गए और वहाँ कैंटीन चलाने में उनका हाथ बँटाने लगे और खाली समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में भी भाग लेने लगे।
संघ प्रवेश
नरेंद्र का मन बड़ा उद्विग्न था, कहीं पर भी मन को शांति नहीं मिल रही थी। न किसी काम में ही मन लग रहा था। संघ कार्य से उनके मन को शांति मिली। शांत मन से अब नरेंद्र पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों से जुड़ गए। संघ के प्रचारक बनकर अकेले रहने लगे, ताकि अधिक-से-अधिक समय संघकार्य में लगा सकें। नरेंद्र मोदी स्वामी विवेकानंदजी के जीवन से अत्यधिक प्रभावित थे। वे अकसर स्वामीजी द्वारा लिखी हुई पुस्तकों का अध्ययन करते रहते थे। १९७१ में नरेंद्र ने बँगलादेश और पूर्वी बंगाल के मुसलिमों और हिंदुओं पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार और जनसंहार के विरुद्ध संघर्ष करते हुए सत्याग्रह किया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। लेकिन फिर जल्दी ही छोड़ दिया गया।
आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष
२६ जून, १९७५ को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया, जिससे निपटने के लिए संघ ने ‘गुजरात लोक संघर्ष समिति’ का गठन किया और इसके विरुद्ध भूमिगत आंदोलन छेड़ दिया-एक भूमिगत कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए नरेंद्र को अकसर अलग-अलग वेश बनाकर निकलना पड़ता था। नरेंद्र की आयोजन क्षमता और संगठन-शक्ति से परिचित संघ ने आपालकाल के विरुद्ध नरेंद्र की बनाई योजनाओं पर चलते हुए भूमिगत आंदोलन सफलतापूर्वक चल रहा था। प्रतिबंध के साथ ही संघ के सभी कार्यालय सील कर दिए गए थे। फिर भी संघ की बैठकें नियमित होती रहती थीं।
बैठक का स्थान और तारीख कोडवर्ड में तय होते थे। दिल्ली में लोक संघर्ष समिति की भूमिगत बैठक में आपातकाल के विरुद्ध सत्याग्रह की तारीख १४ नवंबर तय हुई थी-यह कोडवर्ड संघ के सभी अधिकारियों तक पहुँचा दिया गया। नरेंद्र की गिरफ्तारी का वारंट था। इसके बावजूद वे सक्रिय भूमिका निभाते रहे और ढाई वर्ष चले आपातकाल में पुलिस की पकड़ से दूर ही रहे। आपातकाल का वह समय नरेंद्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। १९७८ में उन्हें विभाग-प्रचारक की जिम्मेदारी सौंप दी गई। विभाग में छह जिलों-ग्रामीण वड़ोदरा, पंचमहल, दाहोद, आणद, खेड़ा और वड़ोदरा नगर-को शामिल किया गया।
कुछ ही दिनों बाद नरेंद्र को आपातकाल के संघर्ष में उनके जुझारूपन को देखते हुए प्रंत सह-व्यवस्था प्रमुख की जिम्मेदारी सौंप दी गई। दो वर्ष के भीतर ही उनका संघ कार्य का उत्तरदायित्व बढ़ा दिया गया। उनका कार्यक्षेत्र मध्य और दक्षिणी गुजरात के खेड़ा जिले से लेकर वलसाड़ के उमरगाँव तक था। ११ अगस्त, १९७९ में बच्चू बाँध टूट जाने से मोरबी में तबाही मच गई। १८०० लोग मारे गए। पूरा शहर बरबाद हो गया। इस आपदा में नरेंद्र ने राहत और पुनर्वास कार्य की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।
राजनीति में प्रवेश
2 मार्च, १९८१ को संघ के प्रंत प्रचारक केशवराव देशमुख के निधन के बाद नरेंद्र को अहमदाबाद स्थित गुजरात के प्रंत मुख्यालय में रहकर संघ के विभिन्न संगठनों, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, भारतीय किसान संघ, विश्व हिंदू परिषद्, समुत्कर्ष और उसकी प्रकाशन शाखाएँ (जिनमें ‘साधाना’ साप्ताहिक भी शामिल था) के मध्य संपर्क बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई-नरेंद्र संघ के प्रंत प्रचारक लक्ष्मण रावजी इनामदार से बहुत प्रभावित थे।
१५ जुलाई, १९८५ को उनके निधन के बाद उनके पद-चिह्नों पर चलते हुए नरेंद्र ने पूरी तरह से राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए।
न्याययात्रा का आयोजन
१९८७ में नरेंद्र ने एक ‘न्याय यात्रा’ निकालने की योजना बनाई। यह गुजरात में अपनी तरह की पहली यात्रा थी। यह यात्रा पंचमहल, साबरकाँठा, महेसाणा, अमदाबाद, बनासकाँठा, कच्छ, सुरेंद्रनगर, राजकोट, जामनगर, अमरेली और भावनगर जिलों के अकाल प्रभावित कुल ११५ तालुकों और लगभग १५००० गाँवों से होकर गुजरी थी-यात्रा के दौरान अकाल प्रभावित लोगों से एकत्र की गई जानकारी के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करके उसे राज्यपाल को सौंपा गया। यह नरेंद्र के लिए महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। उन्होंने पार्टी को आम जनता के निकट लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नरेंद्र यात्राओं के आयोजनों और उनका प्रंध करने में महारथ हासिल कर चुके थे। ११ दिसंबर, १९९१ को उन्होंने कन्याकुमारी से ‘एकता यात्रा’ प्रारंभ की। आतंकवादियों की धमकी के बावजूद नरेंद्र मोदी ने २६ जनवरी को श्रीनगर पहुँचकर, वहाँ लाल चौक पर तिरंगा फहराकर इसका समापन किया। मई १९९१ में हुए दसवें लोकसभा चुनावों में भाजपा २६ में से २० सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रही।
करिश्माई नेतृत्व एवं संगठनकर्ता
नरेंद्र गुजरात के एक प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में उभरने लगे थे। अमरीका ने उन्हें एक युवा नेता के रूप में अपने यहाँ आमंत्रित किया। वापसी में भाजपा नेतृत्व ने उन्हें सचिव के रूप में पार्टी की गतिविधियों के प्रंध की जिम्मेदारी सौंप दी। इस प्रकार नरेंद्र मोदी राजनीतिक युग में प्रवेश कर चुके थे। उस वर्ष हुए गुजरात विधान-सभा चुनावों में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिली। पार्टी ने 182 में से 121 सीटें जीत लीं।
इस जीत का श्रेय नरेंद्र को दिया गया। उन्हें भाजपा की इस जीत का ‘वास्तुकार’ कहा गया। इस पर मोदी ने कहा, ‘‘मैं पार्टी का एक समर्पित कार्यकर्ता हूँ और इसी रूप में जो काम मुझे मिलेगा, मैं करता रहूँगा।’’ केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त हुए, पर पार्टी के कुछ सत्तालोलुप नेताओं ने बगावत कर दी। परिणामतः नरेंद्र मोदी को गुजरात से दिल्ली भेजा गया। दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया। दो ही वर्षों में उनकी संगठन-क्षमता देखकर उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। पं. दीनदयाल उपाध्याय, सुंदरसिंह भंडारी और कुशाभाऊ ठाकरे जैसे दिग्गज कार्यकर्ताओं के बाद इस प्रतिष्ठित पद पर पहुँचने वाले नरेंद्र मोदी चौथे व्यक्ति थे।
गुजरात के मुख्यमंत्री
छह वर्ष तक नरेंद्र मोदी गुजरात की राजनीति से दूर रहे। दिल्ली में रहकर महासचिव की जिम्मेदारी निभा रहे थे। इस बीच गुजरात भाजपा में भारी उठा-पटक मची हुई थी। 2000.2001 में पार्टी राज्य में एक भी उपचुनाव और स्थानीय चुनाव नहीं जीत सकी थी। पार्टी नेतृत्व के अनुसार पार्टी को जीत की पटरी पर एक ही व्यक्ति ला सकता था-और वे थे नरेंद्र मोदी। ‘तुंत गुजरात पहुँचो और सरकार की कमान सँभालो।’ नरेंद्र मोदी के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का फोन आया। नरेंद्र मोदी को ७ अक्तूबर को राज्यपाल सुंदरसिंह भंडारी ने राज्य के चौदहवें मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
पहली बार संघ का कोई प्रचारक राज्य का मुख्यमंत्री बना था। मुख्यमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। मैं यहाँ एक दिवसीय मैच खेलने आया हूँ। मुझे सीमित ओवरों वाले इस खेल में धुआँधार बल्लेबाजों की जरूरत है, जो सीमित ओवरों में ज्यादा-से-ज्यादा रन बना सकें। हमें तीन बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। अनुशासन, समन्वय और कार्य-कुशलता। हमारे पास केवल 500 दिन और 12000 घंटे बचे हैं। हमें जीत सुनिश्चित करने के लिए जनता की आशाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। हमारा नया नारा है-‘आपनु गुजरात आगबु गुजरात’ यानी ‘हमारा गुजरात, अद्वितीय गुजरात’। मार्च 2003 में होनेवाले विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए नरेंद्र मोदी के पास केवल एक वर्ष का ही समय था।
विकास पुरुष की
छवि चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी माँ का आशीर्वाद लेने उनके पास पहुँचे। माँ ने आशीर्वाद के साथ एक शिक्षा भी दी। मुख्यमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने गुजरात को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए एक नया नारा दिया-आई टी = इंडियन टैलेंट, आई टी = इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, आई टी = इंडिया टुमॉरो। 2001 से 2009 के बीच 50,000 से अधिक रोक-बाँधों और ताल-तलैयों का निर्माण कर पानी की समस्या से निजात दिलाई। मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने विकास का पहिया चहुँ दिशा में तेज गति से दौड़ाया। उनके द्वारा शुरू की गई अनूठी ‘ज्योतिग्राम योजना’ से सभी अठारह हजार गाँवों को चौबीसों घंटे बिजली मिल रही थी। २,७८६ किलोमीटर लंबी सड़कें बनवा डालीं।
पहले गुजरात का पर्यटन बेजान था, नरेंद्र मोदी ने एक कार्य योजना तैयार की, जिसके कारण आज लाखों पर्यटक प्राचीन स्मारकों, सुंदर मंदिरों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने गुजरात आते हैं। नरेंद्र मोदी ने राज्य में पतंग उद्योग विकसित किया और उत्तरायण के पतंग उत्सव को, जिसे ‘विश्व गुजराती परिवार महोत्सव’ नाम दिया गया था, इसको पर्यटन विकास और सांस्कृतिक एकता के लिए उपयोग किया गया। इससे अनेक देशों के पतंगबाज स्थानीय पतंगबाजों के संपर्क में आते हैं। नरेंद्र मोदी तीन बार गुजरात के मुख्य मंत्री बने और अपने कार्यकाल में उन्होंने गुजरात को शेष भारत के लिए विकास का मॉडल बना दिया। अब उन्हें पूरे देश की जिम्मेदारी उठाने के लिए एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।
भारत के प्रधानमंत्री
राजनीति के इतिहास में वर्ष 2014 के आम चुनाव अभूतपूर्व रहे। नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार का स्बासो् आकर्षक और अस्रादार माध्यम था-थी-डी रैलियाँ। वर्ष 2012 के गुजरात विधानस्भा चुनाव में थी-डी होलोगाम के स्था नरेंद्र मोदी के प्रयोग ने उन्हें 53 स्थानों पर एक स्था भाषण देने की योजना के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्सा् में जगह दिला दी। इसा् लोकस्भा चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी ने 1350 थी-डी स्भा, 437 जनस्भा, 176 भारत विजय रैली सो् एक नया कीर्तिमान स्थापित किया, तो 4000 जगहों पर हुई ‘चाय पर चर्चा’ के माध्यम सो् 50 लाख लोगों सो् स्पंर्क स्थापित किया। नरेंद्र मोदी की यह मेहनत ऐसी् रंग लाई और नए कीर्तिमान स्थापित किए। 30 वर्ष के बाद इसा् देश में किसी् एक पक्ष को स्पष्ट बहुमत मिला।
अकेले भाजपा को 283 और उस्के गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 335 स्टें मिलीं। और तो और 11 राज्यों में कांगेसा् पक्ष को एक भी स्टी नहीं मिली; यहाँ तक कि कांगेसा् लोकस्भा में प्रतिपक्ष बनने लायक स्टें भी देश भर सो् नहीं जुटा पाई। नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था, ‘कांगेसा् मुक्त भारत’, जो उन्होंने कर दिखाया। नरेंद्र मोदी ने 26 मई, 2014 को भारत के 15वें प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही अपनी टीम के स्था काम-काज आरंभ कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी और उनका पूरा मंत्रिमंडल अनुभवी, परिपक्व और दमदार है। मोदी को तपे-तपाए कार्यकर्ता मंत्री के रूप में मिले हैं। अब नरेंद्र मोदी का लक्ष्य है-‘भारत का पुनर्निर्माण।’ स्वामी विवेकानंद का स्वप्न था, ‘भारत जगद्गुरु बने,’ इक्कीस्वीं शताब्दी के नरेंद्र का स्वप्न भी है-‘भारत विश्व का र्स्वाधिक स्मार्थ्यवान, स्वाभिमानी और स्शाक्त राष्ट्र बने।’