Gajnavi Ke Aakraman GK Question And Answer
महमूद गजनवी (997-1030)
- a) वह बुत-शिकन (मूर्तियों को तोड़ने वाला) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उसने 1000 ई. से 1027 ई. के बीच भारत में सत्रह लूट अभियान चलाए.
- b) अपने पूर्वी प्रान्त के रूप में पंजाब पर कब्ज़ा कर उसने दावा किया कि वह दो उद्देश्यों से भारत में आया है, एक भारत में इस्लाम का प्रसार और दूसरा भारत से धन संपत्ति लूटकर स्वयं को अमीर बनाना.
- c) 1025 ई. में उसने हिन्दुओं के विख्यात मंदिर गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया.
- d) अलबरूनी जिसने किताब-उल-हिंद (तहकीक-ए-हिंद) लिखी, फिरदौसी जिसने शाहनामा लिखा, ये महमूद गजनवी के दरबारी इतिहासकार थे. 1010 से 1026, तक आक्रमणकारी मंदिरों के शहरों थानेश्वर, मथुरा और कन्नौज की और बढ़ते रहे और अंततः सोमनाथ पर आक्रमण किया.
मुहम्मद गोरी (शहाबुद्दीन मुहम्मद) 1173 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद (1173–1206 ई.), जिसे मुहम्मद गोरी भी कहते थे, गजनी की गद्दी पर बैठा. गोरी इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह ख्वारिज़मी साम्राज्य की बढ़ती शक्ति का सामना कर पाता इसलिए उसे एहसास हुआ कि मध्य ऐसा में उसके प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं है.
पंजाब और सिंध पर कब्ज़ा
- a) मुहम्मद गोरी ने अपना पहला अभियान 1175 ई. में शुरू किया. वह मुल्तान की ओर बढ़ा और मुल्तान पर अधिकार कर लिया. इसी समय उसने भाति राजपूतों से उच्छ छीन लिया.
- b) 3 वर्ष बाद 1178 ई. में वह पुनः गुजरात कब्जाने के लिए बढ़ा लेकिन गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय ने उसे अहिलवाड़ा के युद्ध में बुरी तरह पराजित किया. लेकिन 1190 ई. में इसने मुल्तान, पंजाब और सिंह को सुरक्षित कर गंगा के दोआब में एक जोरदार हमले के लिए मार्ग प्रशस्त किया.
दिल्ली सल्तनत की स्थापना और विस्तार
तराइन का प्रथम युद्ध (1191ई.) 1191ई. में तराइन में लड़े गए प्रथम युद्ध में गोरी की सेना बुरी तरह परास्त हुई और वह मरते मरते बचा.
पृथ्वीराज ने भटिंडा पर अधिकार तो जमा लिया किन्तु उसने किले में सेना की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की.
इसने गोरी को, अपनी सेना को पुनः इकठ्ठा कर भारत पर एक और आक्रमण का मौका दे दिया.
तराइन का द्वितीय युद्ध (1192ई.)
यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. मुहम्मद गोरी इस युद्ध के लिए पूरी तैयारी के साथ आया था.
तुर्की और राजपूत शक्तियां एक बार फिर तराइन के मैदान में आमने सामने थीं.
राजपूत सैनिक, तुर्की सैनिकों से अधिक संख्या में थे किन्तु तुर्की सैनिकों के पास पूर्णतः व्यवस्थित तत्पर घुड़सवार सेना थी. भारतीय शक्तियों का तुर्की घुड़सवार सेना से कोई मेल नहीं था. तुर्की घुड़सवार दो तकनीकों का प्रयोग कर रहे थे. पहली थी घोड़ों के जूते जो उनके खुरों की रक्षा कर रही थी और दूसरी तकनीक, लोके के रकाबों का प्रयोग थी जो घुड़सवारों को अच्छी पकड़ शक्ति दे रही थी और युद्ध में बेहतर प्रहार शक्ति दे रही थी. बड़ी संख्या में भारतीय योद्धा मारे गए.पृथ्वीराज ने भागने का प्रयास किया किन्तु सरसुती के निकट पकड़ा गया. तुर्की सेना ने हांसी, सरसुती और समाना के किले अपने कब्जे में ले लिए. फिर वे दिल्ली और अजमेर की और बढ़े. तराइन के बाद गोरी गजनी लौट गया और भारत का शासन अपने विश्वसनीय दस् क़ुतुबुद्दीन एबक को सौंप गया. 1194 ई. में मुहम्मद गोरी पुनः भारत लौटा.
उसने 50,000 घुड़सवारों के साथ यमुना पार की और कन्नौज की और बढ़ा. उसने कन्नौज के शासक जयचंद को चन्दावर को पराजित किया. इस प्रकार, तराइन और चन्दावर के युद्धों ने उत्तरी भारत में तुर्की शासन की नींव रखी. 1206 ई. में गोरी की मृत्यु हो गई लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं था कि भारत में तुर्की शासन समाप्त हो गया था, वह अपने पीछे अपने गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़ गया था जो दिल्ली सल्तनत का पहला सुलतान बना
दिल्ली सल्तनत
मुहम्मद गोरी की हत्या के बाद, दिल्ली का नियंत्रण क़ुतुबुद्दीन ऐबक के हाथों में आ गया. इस काल को पांच अलग-अलग कालों में बांटा जा सकता है. ये हैं:-
- गुलाम वंश (1206-90)
- खिलजी वंश (1290-1320)
- तुगलक़ वंश (1320-1414)
- सैयद वंश (1414-51)
- लोदी वंश (1451-1526).
गुलाम वंश
क़ुतुबुद्दीन ऐबक (1206-10)
- यह मूलतः एक तुर्की गुलाम था, जिसे मुहम्मद गोरी ने ख़रीदा था और बाद में अपना गवर्नर बना दिया था.
- गोरी की मृत्यु के बाद, ऐबक दिल्ली सल्तनत का स्वामी बना और 1206 ई. में गुलाम वंश की नींव रखी. • इसके शासन काल में राजधानी दिल्ली नहीं बल्कि लाहौर थी.
- इसकी दानशीलता के कारण, इसे लाख बख्स की उपाधि मिली.
- यह 1210 में चौगन या पोलो खेलते हुए मर गया.
- इसने दो मस्जिद, दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम और अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाई.
- उसने प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाज़ा कुतिबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में क़ुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया.
- ऐबक सीखने में विश्वास करता था. उसने ‘ताज-उल-मस्सिर’ के लेखक हसन-उन-निजामी और ‘तारिख-ए-मुबारक शाही’ के लेखक फखरुद्दीन का संरक्षण किया.
आराम शाह (1210)
- यह ऐबक का पुत्र था जो जुद के युद्ध में इल्तुतमिश द्वारा पराजित कर दिया गया.
शमशुद्दीन इल्तुतमिश (1210-36)
- यह ऐबक का एक गुलाम था और ममलूक जनजाति का था. इसने 1211 ई. में दिल्ली में गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया.
- इल्तुतमिश ने सर-ए-जहांदार के रूप में शुरुआत की थी जिसका अर्थ होता था शाही रक्षक.
- वह एक सक्षम शासक था और ‘दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक’ माना जाता है.
- उसने लाहौर की बजाय दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया.
- उसने ख्वारिज्म शाह को शरण देने से इनकार कर, मंगोल शासक चंगेज़ खान से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की, जो ख्वारिज्म का पीछा कर रहा था.
- उसने चांदी का सिक्का (टंका) और तांबे का सिक्का (जीतल) चलाया.
- उसने इकता प्रणाली की शुरुआत की और नागरिक प्रशासन एवं सेना में सुधार किए जिनका वेतन भुगतान और भर्ती अब केन्द्रीय स्तर से की जाने लगी थी.
- उसने गुलामों के एक अधिकारिक गुट गठन किया जिसे चहलगानी/चालीसा (40 लोगों का समूह) कहा जाता था.
- उसने ऐबक द्वारा शुरू कराए गए क़ुतुब मीनार के निर्माण को पूरा करवाया.
- उसने ‘तबाक़त-ए-नासिरी’ के लेखक ‘मिनाज-उस-सिरज’ को संरक्षण दिया.
रुकनुद्दीन : 1236
- वह इल्तुतमिश का बेटा था और अपनी माँ, शाह तुर्कान द्वारा, इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठाया गया था.
- वह इल्तुतमिश की बेटी रजिया द्वारा अपदस्थ कर दिया गया.
रज़िया सुलताना: (1236 – 40)
- इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रज़िया को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था किन्तु कूच लोगों ने रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को गद्दी पर बैठा दिया.
- वह ‘पहली और एकमात्र मुस्लिम स्त्री’ थी जिसने अब तक भारत पर शासन किया
. • उसने बिना परदे के शासन किया
. • उसने अबीसीनियाई गुलाम मालिक याकूत को उच्च पद देकर अमीरों को नाराज कर दिया.
- इल्तुतमिश के वज़ीर जुनैदी ने उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया लेकिन वह परास्त हुआ.
- भटिंडा में एक गंभीर विद्रोह हुआ. भटिंडा के गवर्नर अल्तुनिया ने रज़िया का आधिपत्य मानने से इनकार कर दिया. रज़िया याकूत के साथ अल्तुनिया के खिलाफ लड़ने निकल पड़ी. हालाँकि ने याकूत की हत्या कर दी और रज़िया को बंदी बना लिया.
- बाद में, रज़िया ने अल्तुनिया से शादी कर ली और दोनों ने दिल्ली की और मार्च किया. इधर दिल्ली में अमीरों ने इल्तुतमिश के तीसरे बेटे बहराम शाह को गद्दी पर बैठा दिया.
- 1240 ई. में रज़िया एक षड़यंत्र का शिकार बनी और कैथल (हरयाणा) के निकट उसकी हत्या कर दी गई.
बहराम शाह (1240-42)
- इल्तुतमिश का तीसरा बेटा बहराम शाह, शक्तिशाली तुर्की अमीरों के गुट चालीसा द्वारा गद्दी पर बिठाया गया.
- बाद में वह तुर्की अमीरों द्वारा मार दिया गया.
अलाउद्दीन मसूद शाह: 1242-46
- यह रुकनुद्दीन फ़िरोज़ का बेटा था.
- यह बलबन और नासिरुद्दीन महमूद की माँ, मल्लिका-ए-जहाँ के षड़यंत्र के बाद अपदस्थ कर दिया गया और नासिरुद्दीन महमूद नया सुल्तान बना.
नासिरुद्दीन महमूद 1246-66
- यह इल्तुतमिश का बड़ा बेटा था
. • मिनाज-उस-सिरज ने अपनी पुस्तक, तबाक़त-ए-नासिरी इसे समर्पित की है.
गयासुद्दीन बलबन : 1266-87
- नासिरुद्दीन के मौत के बाद; 1266 में बलबन गद्दी पर बैठा.
- इसने चालीसा की शक्ति समाप्त कर दी और ताज की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया.
इसने इसने शासन प्रबंध को बेहतर बनाया.
- बलबन की शासन व्यवस्था पारी दरबार मॉडल से प्रभावित थी. उसने जिल-ए-इलाही (ईश्वर की छाया) की उपाधि ली.
- उसने सिजदा(सम्राट को साष्टांग प्रणाम) और पैबोस (सम्राट के पैर चूमना)प्रथा शुरू करवाई.
- खुद को जिल-ए-इलाही (ईश्वर की छाया) कहके राजा के अधिकारों को दैवी अधिकार बताया.
- उसने न्याय और कानून व्यवस्था बनाने पर अत्यधिक बल दिया.
- उसने सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज़ बनाया.
- अपने अंतिम दिनों में, अपने बड़े और सबसे प्रिय पुत्र, मुहम्मद की मौत के कारण वह सल्तनत के कार्यों की अनदेखी करने लगा. उसके नजदीकी और प्रिय गुलाम तुगरिल के विद्रोह ने भी उसे परेशान कर दिया. मुहम्मद, मंगोलों के खिलाफ लड़ते हुए 1285 में मारा गया और तुगरिल को पकड़ कर मौत की सजा दे दी गई.
कैकुबाद : 1287-90
- यह बलबन का पोता था और दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन द्वारा गद्दी पर बैठाया गया था.
- लेकिन कैकुबाद की हत्या अमीर कैमूर ने कर दी.
- कैकुबाद का छोटा बेटा गद्दी पर 3 वर्ष में बैठा.
- वह अंतिम इलबरी शासक था
- खिलजी अमीरों ने इसके खिलाफ क्रांति कर दी इसे तीन महीने में मार दिया.
खिलजी वंश (1290-1320ई.)
जलालुद्दीन खिलजी
- इसने खिलजी वंश की स्थापना की
. • यह एक उदार शासक था और धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई.
- उसका दामाद और भतीजा अलाउद्दीन खिलजी था.
अलाउद्दीन खिलजी
- यह दिल्ली का पहला तुर्की सुलतान था जिसने राजनीति से धर्म को अलग किया. इसने घोषणा की कि, ‘शासन कोई रिश्तेदारी नहीं जानता’
- जलालुद्दीन खिलजी के शासन में यह कड़ा का गवर्नर या सूबेदार था
. • इसने सिकंदर-ए-सैनी या दूसरा सिकंदर की उपाधि धारण की
. • अलाउद्दीन ने गुजरात (1298), रणथंभोर (1301), मेवाड़ (1303), मालवा (1305) और जालोर (1311) को अपने अधिकार में कर लिया.
- दक्कन में, मलिक काफूर के नेतृत्व में अलाउद्दीन की सेना ने, रामचन्द्र यादव (देवगिरी का यादव शासक), प्रताप रुद्रदेव (वारंगल का काकतीय शासक), वीर बल्लाल तृतीय (द्वार्समुद्र का होयसल शासक) और वीर पाण्ड्य (मदुरई का पाण्ड्य शासक) को पराजित किया.
- मलिक काफूर को मलिक नैयब के ख़िताब के नवाजा गया.
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