बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम-2006 एवं बाल विवाह प्रतिषेध नियम-2007 – बाल विवाह एक सामाजिक बुराई ही नहीं बल्कि एक कानूनी अपराध भी हैं। बाल विवाह का महिला एवं उससे उत्पन्न होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य एवं भावी जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बाल विवाह के दुष्प्रभाव से होने वाली क्षति का आंकलन किया जाना संभव नहीं है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा बाल विवाह रोकथाम अधिनियम-1929 लागू किया गया था।
भारत सरकार द्वारा बाल विवाह को अधिक प्रभावी तरीके से रोकने के लिए कानून को और अधिक सशक्त एवं वृहद बनाने के उद्देश्य से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम-2006 लागू किया गया है, जो कि दिनांक 11 जनवरी 2007 से पूरे देश (जम्मू- काश्मीर को छोड़कर) में प्रभावशील है। इस अधिनियम के लागू होने से बाल विवाह रोकथाम अधिनियम-1929 निरसित हो गया है। वर्तमान कानून- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 तीन उद्देश्य को पूरा करता है- बाल विवाह की रोकथाम, बाल विवाह में शामिल बच्चों की सुरक्षा और अपराधियों पर मुकदमा चलाना ।
अधिनियम के प्रावधानानुसार विवाह के लिए लड़के (बालक) की न्यूनतम आयु 21 वर्ष एवं लड़की (बालिका) की न्यूनतम आयु 18 वर्ष नियत की गई है। अधिनियम की धारा-3 के अनुसार दोनों पक्ष अथवा किसी एक पक्ष की आयु निर्धारित आयु से कम होने पर विवाह, बाल विवाह होगा तथा यह विवाह रद्द करने योग्य ( व्यर्थनीय) होगा । यदि बालक (लड़के) की आयु 21 वर्ष अथवा बालिका (लड़की) की आयु 18 वर्ष अथवा दोनों में से किसी एक पक्ष की आयु निर्धारित न्यूनतम आयु (लड़के के लिए 21 वर्ष एवं लड़की के लिए 18 वर्ष) से कम है तो ऐसा विवाह रद्द किया जा सकता है। इस अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार पुरूष जिसने बाल विवाह किया है, के द्वारा स्त्री पक्ष (लड़की) को उनके पुनर्विवाह तक जीविका (निर्वहन राशि ) प्रदान किये जाने का प्रावधान है। यदि पुरूष पक्ष (लड़का ) अवयस्क है तो जीविका प्रदान करने का भार उसके पालक/अभिभावक / संरक्षक पर होगा।
अधिनियम की धारा- 9 के अनुसार कोई भी 18 वर्ष से अधिक उम्र वाला व्यस्क पुरूष किसी अवयस्क स्त्री (18 वर्ष से कम आयु) से विवाह करता है तो उसे दो वर्ष का सश्रम कारावास या जुर्माना जो एक लाख रूपये तक हो सकता है अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है। इतना ही नहीं अधिनियम की धारा 10 के तहत बाल विवाह के कारक, संचालनकर्ता एवं प्रेरित करने वाले को भी दो वर्ष की कैद बामुशक्कत या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनो से दंडित किये जाने का प्रावधान है। अधिनियम की धारा-12 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अथवा संरक्षक किसी अव्यस्क बच्चे को कपटपूर्ण ढंग से अथवा धोखे से अथवा बलपूर्वक विवाह हेतु विक्रय करता है अथवा विवाह कराकर बेचता है अथवा अनैतिक उद्देश्य के लिए उसका उपयोग करता है, तो ऐसा विवाह शून्य कहलायेगा तथा रद्द करने योग्य (व्यर्थनीय) होगा ।
इस अधिनियम की धारा-5 के तहत् बाल विवाह के परिणामस्वरूप शिशु / शिशुओं का जन्म होता है तो वह वैध शिशु होगा ।
धारा 13 के तहत, बालक जिसका बाल विवाह हो रहा हो, कोई भी व्यक्ति जिसको बाल विवाह होने को जानकारी हो, बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी अथवा गैर सरकारी संगठन, न्यायालय में आवेदन करं बाल विवाह रुकवाने की व्यादेश (Injunction) प्राप्त कर सकते है । यदि ऐसी व्यादेश के बावजूद भी बाल विवाह किया जाता है तो इसके लिए दो वर्ष तक की सजा अथवा एक लाख रूपये के जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा के तहत, जिला मजिस्ट्रेट को कुछ विशेष दिनों (जैसे अक्षय तृतीया) पर होने विवाह / सामूहिक विवाह रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के अधिकार प्राप्त होते है । अधिनियम की धारा-16 के तहत राज्य सरकार द्वारा बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किये जाने का प्रावधान है जिसमें बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के अधिकार एवं कर्त्तव्यों को भी परिभाषित किया गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य में बाल विवाह प्रतिषेध नियम – 2007, 09 जनवरी – 2008 से प्रभावशील है, जिसके तहत् प्रदेश में प्रत्येक जिले के जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग को बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है, जिन्हें प्रतिषेध अधिकारी के समस्त अधिकार प्रदान किये गये हैं ताकि बाल विवाह जैसी बुराई से सख्ती के साथ निपटा जा सके। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है।