भारत सरकार अधिनियम, 1858
- भारत में कंपनी के शासन की समाप्ति और क्राउन का शासन प्रारंभ.
- द्वि शासन प्रणाली की समाप्ति. कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया.
- भारत के लिए राज्य सचिव (ब्रिटिश कैबिनेट का एक सदस्य) का पद सृजित किया गया. उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों वाली एक परिषद् बनाई गई (भारत परिषद्). वह क्राउन की शक्तियों का प्रयोग करता था.
- राज्य सचिव,. गवर्नर जनरल के माध्यम से भारत पर शासन करता था. गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा और वह भारत में क्राउन का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि था
- . एक एकात्मक और अत्यधिक केंद्रीकृत प्रशासनिक ढांचा बनाया गया.
भारत परिषद अधिनियम, 1861
- भारतीयों को कानून निर्माण की प्रक्रिया में शामिल किया जाने लगा.
- वायसराय की कार्यकारी परिषद में जज के रूप में एक पांचवा सदस्य जोड़ा गया.
- आपात समय में वायसराय अध्यादेश जारी कर सकता था.
- विधान बनाने के लिए कार्यकारी परिषद को 6 से बढाकर 12 सदस्यों वाली किया गया जिसमें आधे गैरसरकारी सदस्य होंगे. इस तरह भारतीय विधायिका की नींव पड़ी.
- 1833 में प्रेसीड़ेंसी सरकारों की समाप्त की गई वैधानिक शक्तियां वापस कर दी गईं.
भारत परिषद अधिनियम, 1892
- यद्यपि सरकारी सदस्यों के बहुमत को बरक़रार रखा गया लेकिन भारतीय विधान परिषद के गैर सरकारी सदस्य, बंगाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स द्वारा नामित किये जाने लगे और प्रांतीय विधानपरिषदों के सदस्य कुछ निश्चित स्थानीय निकायों जैसे विश्वविद्यालय, जिला बोर्ड और नगरपालिकाओं द्वारा नामित किये जाने लगे. भारत में प्रतिनिधित्व प्रणाली की शुरुआत.
- परिषद को बजट पर चर्चा की शक्ति दी गई और कार्यपालिका से प्रश्न करने की शक्ति दी गई.
भारत परिषद अधिनियम, 1909 (मार्ले-मिन्टो अधिनियम)
- • मार्ले राज्य सचिव था जबकि मिन्टो भारत का वायसराय था
- . • केन्द्रीय विधान सभा में सदस्यों की संख्या 60 तक बढ़ा दी गई.
- • विधान परिषद के लिए पहली बार अप्रत्यक्ष चुनाव कराए गए.
- • मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल लाया गया
- . • गैर-सरकारी स्थान चुनाव द्वारा भरे जाने लगे. वे इस प्रकार विभाजित थे :
- ➢ प्रांतीय विधान परिषदों के गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा
➢ 6 प्रान्तों के भूमि मालिकों द्वारा
➢ 5 प्रान्तों के मुसलमानों द्वारा
➢ बारी बारी से यूपी/बंगाल के मुस्लिम भूमि मालिकों द्वारा और बंबई एवं कलकत्ता के चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स द्वारा. मुस्लिम पृथक निर्वाचन से चुने जाते थे.
- बजट से पूर्व प्रस्ताव लाए जा सकते थे और उन्हें अंतिम प्रारूप में शामिल किया जा सकता था.
- पूरक प्रश्न पूछे जा सकते थे.
भारत सरकार अधिनियम, 1919
- मोंटेग्यू(राज्य सचिव) – चेम्सफोर्ड (वायसराय) सुधारों के नाम से जाना जाता है.
- “उत्तरदायी सरकार” के विचार पर जोर दिया गया.
- हस्तांतरण नियम :
- प्रशासन के विषयों को दो वर्गों में बांटा गया – “केन्द्रीय” और “प्रांतीय”
o अखिल भारतीय महत्व के विषयों (जैसे रेलवे और वित्त) केन्द्रीय वर्ग में रखे गए,
o जबकि प्रान्तों के प्रशासन से सम्बंधित विषय प्रांतीय वर्गों में रखे गए.
- प्रान्तों में द्वैध शासन की शुरुआत की गई. प्रशासन के प्रांतीय विषयों को दो वर्गों में बांटा गया – ‘आरक्षित’ एवं ‘हस्तांतरणीय’ विषय
. • हस्तांतरणीय विषयों पर विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से गवर्नर प्रशासन करता था. गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद आरक्षित विषयों (रेल, डाक, तार, वित्त, कानून एवं व्यवस्था आदि) पर प्रशासन करती थी जो विधायिका के प्रति किसी भी तरह उत्तरदायी नहीं थी.
- लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त का एक कार्यालय खोला गया.
- पहली बार भारतीय विधायिका “द्विसदनीय” हुई.
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व बढाकर सिखों को भी दिया गया.
- अब ‘भारत के लिए राज्य सचिव’ को ब्रिटिश राजकोष से वेतन दिया जाने लगा.
भारत सरकार अधिनियम, 1935:
- एक संघ बनाने का प्रयास
- वैधानिक शक्तियों का त्रि स्तरीय विभाजन – जैसे तीन सूचियाँ – संघीय, प्रांतीय और समवर्ती सूची
- अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल में निहित थीं
- केंद्र में द्वैध शासन लाया गया
- प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन की जगह स्वायत्ता ने ले ली.
- एक संघीय न्यायालय की स्थापना
- भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- इस एक्ट में भारत में प्रशासन के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था.
- भारत का विभाजन और दो राज्यों भारत एवं पाकिस्तान की स्थापना.
- दोनों राज्यों की संविधान सभा को अपने अनुसार अपना किसी भी प्रकार का संविधान बनाने और उसे अपनाने की असीमित शक्ति दी गई
. • भारतीय राज्यों पर क्राउन के शासन को समाप्त कर दिया गया.
. • भारत के लिए राज्य सचिव के पद को समाप्त कर दिया गया.