छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास एवं इतिहास Cg Bhasha Ka Vikas in Hindi

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छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास Chhattisgarhi Language Development GK in Hindi

भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुआ है। इसका अर्थ बोलना, कहना या वाणी से व्यक्त करना है, अर्थात् भाषा मनुष्य की सार्थक वाणी को कहते हैं जिनका कुछ स्पष्ट अर्थ निकलता है। भाषा का निर्माण जिन व्यक्त ध्वनियों से होता है उन्हें वर्ण कहा जाता है।

छत्तीसगढ़ी India के Chhattisgarh राज्य में बोली जाने वाली एक अत्यन्त मोहकमधुर भाषा है।

गार्डनर :- विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त और स्पष्ट ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है उन्हें भाषा कहते हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास भी अन्य आधुनिक भाषाओं की तरह ही प्राचीन आर्य भाषा से ही हुआ है। आर्यों की प्राचीन भाषा समय के साथ परिवर्तित हो गयी और उससे हिन्दी और उसकी उपभाषाओं का विकास हुआ। विभिन्न उपभाषाओं के मिलने से भारत की अनेकानेक बोलियाँ पनपी जिनमें से छत्तीसगढ़ी भी एक थी। भाषाओं तथा बोलियों की इस विकास यात्रा को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं – छत्तीसगढ़ी भाषा को 10 करोड़ से अधिक लोग बोलते है। और ये भाषा छत्तीसगढ़ की मातृभाषा है।

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Cg Bhasha Ka Vikas भारतीय भाषाओं के विकास क्रम को व्याकरणाचार्यों ने 3 भागों में विभाजित किया है 

  1. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (1500-500 ई.पू.)
  2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई.पू-1000 ई.)
  3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (1000 ई. से वर्तमान तक)

 

  1. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (1500-500 ई.पू.)

इस युग के भारतीय आर्यों के भाषाओं के उदाहरण हमें प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में मिलते हैं। प्राचीन युग के अंतर्गत वैदिक और लौकिक दोनों भाग आते हैं। संस्कृत शिष्ट समाज के परस्पर विचार-विनिमय की भाषा थी और वह यह काम कई सदी तक करती रही, संस्कृत का प्रथम शिलालेख 150 ई. रूद्रदामन का जूनागढ़ शिलालेख है तब से प्रायः 12 वीं सदी तक इसको राजदरबारों से विशेष प्रश्रय मिलता रहा। बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही स्थानीय बोलियों को महत्व मिला । भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार को प्रभावी बनाने के लिये जन बोलियों को चुना जिसमें पाली सर्वोपरि थी। पाली में जन भाषा और साहित्यिक भाषा का मिश्रित रूप मिलता है।

 

  1. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई.पू.-1000 ई.)

मध्य काल की प्राचीन भाषा का प्रतिनिधि उदाहरण अशोक की धर्म-लिपियों और पाली ग्रंथों में मिलता है। धीरे-धीरे मध्य काल में प्रादेशिक भिन्नता बढ़ी, जिससे अलग-अलग प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ। संस्कृत ग्रंथों में भी विशेषतः नाटकों में इन प्राकृतों का प्रयोग मिलता है। निम्न वर्ग के व्यक्तियों और सामान्य जनता द्वारा इनका प्रयोग हुआ है। इन प्राकृत भाषाओं में शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि प्रमुख रही। साहित्य में प्रयुक्त होने पर व्याकरणाचार्यों ने प्राकृत भाषाओं को कठिन, अस्वाभाविक नियमों से बाँध दिया किन्तु जिन बोलियों के आधार पर उनकी रचना हुई, वे व्याकरण के नियमों . से नहीं बाँधी जा सकी। व्याकरणाचार्यों ने लोगों की इन नवीन बोलियों को अपभ्रंश अर्थात् बिगड़ी हुई भाषा नाम दिया।

अपभ्रंश – मध्यकालीन भारतीय भाषा का चरम विकास अपभ्रंश से हुआ। आधुनिक आर्य भाषा और हिन्दी, मराठी, पंजाबी, उड़िया आदि की उत्पत्ति इन्हीं अपभ्रंशों से हुई है। एक प्रकार से ये अपभ्रंश भाषाएँ प्राकृत भाषाओं और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ियाँ है।

 

  • पूर्वी हिन्दी में छत्तीसगढ़ी के साथ कौन-सी दो बोलियाँ सम्मिलित है? [CG Psc (Mains)2012]

भारतीय आर्य भाषाओं की मध्यवर्ती शाखा के अर्द्धमागधी से पूर्वी हिन्दी का विकास हुआ जो आगे चलकर-अवधी, बघेली एवं छत्तीसगढ़ी में विभक्त हो गयी अर्थात् पूर्वी हिन्दी के अंतर्गत तीन बोलियाँ- अवधी, बघेली एवं छत्तीसगढ़ी आती है।

पूर्वी हिन्दी को भाषाओं का नहीं, प्रत्युत बोलियों का समुदाय माना गया है। ग्रियर्सन के अनुसार-“भारतीय आर्य भाषाओं की यह मध्यवर्ती शाखा, भाषाओं का नहीं वरन् बोलियों का एक समुदाय है।

जी इस अध्ययन का विषय पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोली छत्तीसगढ़ी से है। बघेली तो अवधी के बहुत निकट भाषा है। ग्रियर्सन के अनुसार तो बघेली केवल स्थानीय प्रेम के कारण अलग बोली मानी जाती है अन्यथा यह अवधी का ही दक्षिणी रूप है। तुलसीदास की अमर कृति ‘रामचरितमानस’ एवं जायसी कृत ‘पद्मावत’ इस भाषा की अमर कृतियाँ हैं। पूर्वी हिन्दी की तीनों बोलियाँ एक दूसरे से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं। जैसे

 

हिन्दी

 

छत्तीसगढ़ीअवधीबघेली

 

तालाबतरियातलाव

 

तालाउ

 

औरअउ

 

अउरआऊर
मैला

 

मइलाहा

 

मइलमइल
नाम

 

नाव

 

नाओनाउ
यह

 

येयाइया

 

  1. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (1000 ई.से वर्तमान तक)

भारतीय आर्य भाषा के वर्तमान युग का प्रारंभ प्रायः 1000 ई. से माना जाता है जिनमें महत्व की दृष्टि से आर्य परिवार की भाषाएँ सर्वोपरि है। इनके बोलने बालों की संख्या भारत में सबसे अधिक है। बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से द्रविड़ परिवार की भाषाएँ इसके बाद आती हैं।

पैशाची, शौरसेनी, महाराष्ट्री, अर्द्धमागधी आदि अपभ्रंश भाषाओं ने क्रमशः आधुनिक सिंधी, पंजाबी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, पूर्वी हिंदी, बिहारी बांग्ला, उड़िया भाषाओं को जन्म दिया। शौरसेनी प्राकृत अपभ्रंश से हिन्दी की पश्चिमी शाखा का जन्म हुआ। इसकी दो प्रधान बोलियाँ हैपहला ब्रज व दूसरी खड़ी बोली। हिन्दी की दूसरी शाखा है पूर्वी हिन्दी जिसका विकास अर्द्धमागधी से हुआ है। उसकी तीन प्रमुख बोलियाँ हैं- अवधी, बघेली व छत्तीसगढ़ी। अवधी में साहित्यिक परंपरा रही है।

तुलसी व जायसी ने इसमें अमर काव्य लिखे हैं। बघेली और छत्तीसगढ़ी में प्राचीन समय में उल्लेखनीय साहित्य सृजन नहीं हुआ, जिसकी क्षतिपूर्ति अब हो रही है।

छत्तीसगढ़ी की पड़ोसी भाषाएँ उड़िया, मराठी, बिहारी आदि हैं, साथ ही छ.ग. में अनेक आदिवासी बोलियाँ भी बोली जाती हैं जिनकी वजह से छत्तीसगढ़ी में अनेक विषमताएँ उत्पन्न हो गयी हैं।

छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास क्रम

वैदिक संस्कृति → लौकिक संस्कृति → पाली → प्राकृत → अपभ्रंश → अर्द्धमागधी → पूर्वी हिन्दी – छत्तीसगढ़ी

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