चोल वंश 9वीं – 13वीं शताब्दी chol vansh GK in hindi pdf

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 chol vansh history GK

1) चोल वंश दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्द वंशों में से एक है जिसने तंजौर को अपनी राजधानी बनाकर तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों पर शासन किया.

 2) आरंभिक चोल शासक कारिकाल चोल थे जिन्होंने दूसरी शताव्दी में शासन किया.

 3) 850 में पाण्ड्य-पल्लव युद्द के दौरान विजयालय ने तंजौर पर अपना आधिपत्य जमा लिया. अपने राज्याभिषेक को सफल बनाने के लिए इसने तंजौर में एक मंदिर बनवाया. इस दौरान श्रवणबेलगोला में गोमातेश्वर की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित कराई गई

4) विजयालय का पुत्र आदित्य प्रथम (871-901)उसका उत्तराधिकारी बना. 

5) राजराज प्रथम (985-1014) के शासन के दौरान चोल अपने शीर्ष पर थे. उसने राष्ट्रकूटों से अपना क्षेत्र वापस छीन लिया और चोल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली बन गया. उसने तंजावुर (तमिलनाडु) में भगवान शिव का एक सुन्दर बनवाया. यह उसके नाम से राजराजेश्वर कहलाया.

 6) राजराज प्रथम का पुत्र, राजेंद्र चोल (1014-1044), इस वंश का एक अन्य महत्वपूर्ण शासक था जिसने उड़ीसा, बंगाल, बर्मा और अंडमान एवं निकोबार द्वीप पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया. इसके शासनकाल के दौरान भी चोल वंश की प्रसिद्धि चरम पर थी. इसने श्री लंका पर भी अपना कब्ज़ा किया था. 

7) कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1122) एक अन्य महत्वपूर्ण चोल शासक था. कुलोत्तुंग प्रथम ने दो साम्राज्यों वेंगी के पूर्वी चालुक्य और तंजावुर के चोल साम्राज्य को जोड़ दिया. आदि सदी के लम्बे शासन के बाद 1122 ई.कुलोत्तुंग प्रथम की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र विक्रम चोल, जिसे त्यागसमुद्र भी कहते थे, उसका उत्तराधिकारी बना. 

8) चोल वंश का अंतिम शासक राजेंद्र तृतीय (1246-79) था. वह एक कमजोर शासक था जिसने पांड्यों के समक्ष समर्पण कर दिया. बाद में मालिक काफूर ने 1310 में इस तमिल राज्य पर आक्रमण कर दिया और चोल साम्राज्य समाप्त हो गया.

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