दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 एवं दहेज प्रतिषेध नियम – 2004 — दहेज लेना एवं देना सामाजिक बुराई के साथ-साथ कानूनी अपराध भी है। दहेज रूपी दानव को समाज से मिटाने के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1961 लागू किया गया है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के महत्वपूर्ण प्रावधान – दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है । दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए ra अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताडति किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 को दहेज (निषेध) अधिनियम संशोधन अधिनियम 1984 और 1986 के तौर पर संशोधित किया गया जिसमें दहेज को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है- ‘दहेज’ का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति’- विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को; या विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा; या विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को; शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से संबंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत ) लागू होता हो ।
इस प्रकार दहेज से संबंधित तीन स्थितियां हैं-
विवाह से पूर्व;
विवाह के अवसर पर;
विवाह के बाद;
दहेज लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है । वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है । बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम दस साल की कैद की सजा तय कर दी गयी है। वहीँ जुर्माने की रकम को बढ़ाकर 10,000 रूपये या ली गयी, दी गयी या मांगी गयी दहेज की रकम, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि अदालत ने न्यूनतम सजा को कम करने का फैसला किया है लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को जरूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है (दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 ) ।
दंडनीय है-
दहेज देना दहेज लेना
दहेज लेने और देने के लिए उकसाना वधु के माता-पिता या अभिभावकों से सीधे या परोक्ष तौर पर दहेज की मांग
(दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 ) दहेज के मुकदमे पर निर्णय लेने का क्षेत्राधिकार मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को ही है । दहेज के अपराध का संज्ञान या तो मजिस्ट्रेट खुद ले सकता है या वह पुलिस रिपोर्ट में दर्ज तथ्यों जिनसे अपराध का पता चलता है, के आधार पर या ऐसे व्यक्ति के माता-पिता या अन्य रिश्तेदार द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर या मान्यताप्राप्त कल्याणकारी संस्थान या संगठन के द्वारा दर्ज कराई गयी शिकायत के आधार पर संज्ञान ले सकता है। आमतौर पर लड़कीवाले शिकायत दर्ज करने में हिचकते हैं, इसलिए कल्याणकारी संस्थाओं द्वारा दर्ज शिकायतों को मान्यता मिलने से इस अधिनियम की संभावनाएं व्यापक हुई हैं।
अधिनियम से जुडी प्रमुख धाराएँ
धारा-2 : दहेज का मतलब है कोई सम्पति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से: (क) विवाह के एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को; या (ख) विवाह के किसी पक्षकार के अविभावक या दूसरे व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी पक्षकार को विवाह के समय या पहले या बाद देने या देने के लिए सहमत होना। लेकिन जिन पर मुस्लिम विधि लागू होती है उनके संबंध में महर दहेज में शामिल नहीं होगा ।
धारा-3 : दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा । धारा -4 : दहेज की मांग के लिए जुर्माना- यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।
धारा – 4 ए : किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव भी दहेज की श्रेणी में आता है और उसे भी कम से कम छह मास और अधिकतम पाँच वर्ष के कारावास की सजा तथा पंद्रह हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।
धारा – 6 : यदि कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाता है तो दहेज प्राप्त करने के तीन माह के भीतर या औरत के नाबालिग होने की स्थिति में उसके बालिग होने के एक वर्ष के भीतर उसे अंतरित कर देगा । यदि महिला की मृत्यु हो गयी हो और संतान नहीं हो तो अविभावक को दहेज अन्तरण किया जाएगा और यदि संतान है तो संतान को अन्तरण किया जाएगा। धारा- 8 ए: यदि घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत की गयी हो तो न्यायालय पुलिस रिपोर्ट या क्षुब्ध द्वारा शिकायत किये जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा । धारा – 8बी : दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी जो बनाये गये नियमों का अनुपालन कराने या दहेज की मांग के लिए उकसाने या लेने से रोकने या अपराध कारित करने से संबंधित साक्ष्य जुटाने का कार्य करेगा।
(स्रोत: महिला व बाल विकास मंत्रालय व वर्चुअल लर्निंग )
दहेज प्रथा को अधिक प्रभावी ढंग से रोकने एवं दहेज के विरूद्ध लोगों में जागरूकता लाने के लिए तथा कानून को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए छ.ग. दहेज प्रतिषेध नियम- 2004, दिनांक 24.03.2004 से लागू किया गया है। इस नियम के प्रावधानों के अनुसार दहेज लेना, दहेज देना एवं दहेज मांगना तथा दहेज लेन-देन के लिए मध्यस्थता करना कानूनी अपराध है । दहेज संबंधी कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 05 वर्ष तक कारावास का दंड हो सकता है। नए नियम के तहत् छ0ग0 राज्य के समस्त जिला महिला बाल विकास अधिकारियों को दहेज प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है। प्रत्येक जिले में प्रतिषेध अधिकारी को सलाह देने एवं प्रकरणों की समीक्षा करने के लिए दहेज प्रतिषेध सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया है । दहेज लेन-देन की शिकायत प्राप्त होने पर अथवा स्व- विवेक से दहेज प्रतिषेध अधिकारी बिना वारंट के इस आशय की जाँच कर सकता है । दहेज लेन-देन की सूचना दहेज प्रतिषेध । अधिकारी अथवा नजदीक के पुलिस थाने में दी जा सकती है।