पुष्यभूति वंश का इतिहास सामान्य ज्ञान pushyabhuti vansh in hindi

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Pushyabhuti Vansh Ka Itihas Gk in Hindi

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पुष्यभूति वंश से संबंधित प्रश्न & एनसीईआरटी NOTES

Vardhana / Pushyabhuti Dynasty NCERT NOTES | Ancient History of India

इन प्रश्नों का उत्तर आपको  नीचे देखने को मिलेगा

  • वर्धन वंश का संस्थापक ?
  • पुष्यभूति वंश की राजधानी ?
  • पुष्यभूति कौन था ?
  • वर्धन वंश का संस्थापक कौन था नाम बताइए ?
  • हर्षवर्धन किस वंश का था ?
  • वर्धन वंश का अंतिम शासक कौन था ?
  • वर्धन वंश के संस्थापक कौन है ?

इन प्रश्नों का उत्तर आपको  नीचे देखने को मिलेगा 

  • गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हरियाणा के अंबाला जिले के स्थानेश्वर/थानेश्वर नामक स्थान पर पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई।  
  • यह वंश हुणों के साथ हुए अपने संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हुआ। इस वंश की स्थापना पुष्यभूति द्वारा की गयी थी। सम्भवत: प्रभाकरवर्धन इस वंश का चौथा शासक था। इसके विषय में जानकारी बाणभट्ट के हर्षचरित से मिलती है।
  • प्रभाकरवर्धन दो पुत्रों राज्यवर्धन और हर्षवर्धन एवं एक पुत्री राज्यश्री का पिता था। पुत्री राज्यश्री | का विवाह प्रभाकरवर्धन ने मौखरी वंश के गृहवर्मन से किया।
  • पिता की मृत्यु के बाद राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा, पर शीघ्र की उसे मालवा के खिलाफ अभियान के लिए जाना पड़ा। अभियान की सफलता के बाद लौटते हुए मार्ग में गौड़ के शासक शशांक ने राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
  • राज्यवर्धन के बाद लगभग 606 ई. में हर्षवर्धन थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के विषय में हमें बाणभट्ट के हर्षचरित से व्यापक जानकारी मिलती है।
  • हर्षवर्धन ने लगभग 41 वर्ष तक शासन किया। हर्ष के साम्राज्य का विस्तार जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभी तक था। इसने आर्यावर्त को भी अपने अधीन किया। हर्ष को बादामी के चालुक्य वंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा नदी के किनारे 630 ई. में हराया।
  • हर्षवर्धन की पहली राजधानी स्थानेश्वर (कुरूक्षेत्र के निकट) थी। बाद में इसने अपनी राजधानी कन्नौज में स्थापित की।
  • हर्षवर्धन के दरबार में प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट था, जिसने हर्षचरित की रचना की।
  • हर्ष को विद्वानों के सम्पोषक के रूप में ही नहीं, बल्कि तीन नाटकों- प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद के रचयिता के रूप में भी याद किया जाता है।
  • हर्ष को भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट कहा जाता है। उसकी धार्मिक नीति सहनशील थी। हर्ष प्रारम्भिक जीवन में शैव था, पर धीरे-धीरे वह बौद्ध धर्म का महान संपोषक हो गया।
  • एक नैष्ठिक बौद्ध के हैसियत से हर्ष ने महायान के सिद्धान्तों के प्रचार के लिए 643 ई. में कन्नौज तथा  प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया। कन्नौज सभा का सबसे महत्त्वपूर्ण निर्माण एक विशाल स्तंभ था, जिसके बीच में बुद्ध की स्वर्ण-प्रतिमा स्थापित थी। प्रतिमा की ऊँचाई उतनी ही थी, जितनी हर्ष की अपनी थी। हर्ष द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष परिषद् कहा गया है।  
  • यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाने वाला चीनी यात्री
  • ह्वेनसांग हर्ष के ही काल में भारत आया। वह लगभग 15 वर्षों तक भारत में रहा। ह्वेनसांग ने हर्ष द्वारा आयोजित दोनों धार्मिक सभाओं में भाग था
  • ह्वेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने एवं बौद्ध ग्रन्थ संग्रह करने के उद्देश्य से भारत आया था।
  • हर्ष को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था। उसने परम भट्टा नरेश की उपाधि धारण की।
  • साधारण सेना को चाट एवं भाट, अश्वसेना के अधिकारी को बृहदेश्वर, पैदल सेना के अधिकारी को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था।

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