बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 बालकों के अधिकारो के संरक्षण हेतु बाल अधिकार आयोग के गठन के संबंध में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम-2005, 20 जनवरी 2006 से लागू किया गया है। बालक अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोगों और बालकों के विरुद्ध अपराधों या बालक अधिकारों के अतिक्रमण के त्वरित विचारण के लिए बालक न्यायालयों के गठन तथा उससे संबंधित और उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए यह अधिनियम है। इस अधिनियम के तहत बालकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर बाल संरक्षण आयोग के गठन का प्रावधान है। यह आयोग बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय का अनुपालन करने, विद्यमान विधि नीति और पद्धति का विश्लेषण करने, बच्चों को प्रभावित करने वाले नीति या प्रथा के किसी पहलू के संबंध में जांच करने, रिपोर्ट प्रस्तुत करने, प्रस्तावित नए विधान टिप्पणी करने, बच्चों के सुरक्षा के संबंध में सरकार को रिपोर्ट देने, बच्चों का हर दृष्टि से संवर्धन करने का कार्य करेगी।
बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 के प्रमुख तथ्य
( परिक्षोपयोगी संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ )
- (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 है
- (2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर, संपूर्ण भारत पर है।
- ( 3 ) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे। परिभाषाएं इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –
(क) ‘अध्यक्ष’ से, यथास्थिति, आयोग या राज्य आयोग का अध्यक्ष अभिप्रेत है
(ख) ‘बालक अधिकारों’ के अन्तर्गत 20 नवम्बर, 1989 को (1) बालक अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में अंगीकृत और 11 दिसम्बर, 1992 को भारत सरकार द्वारा अनुसमर्थित बालकों के अधिकार भी हैं; ‘
- (1) आयोग’ से धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है:
- (2) ‘राज्य आयोग’ से धारा 17 के अधीन गठित राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है।
राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग
राष्ट्रीय बालक अधिकार सरंक्षण आयोग का गठन
- (1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के अधीन एक निकाय का जो राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग के नाम से जात होगा, उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और उसे सौंपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए, गठन करेगी।
- (2) आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात्-
(क) एक अध्यक्ष, जो विख्यात व्यक्ति हो और जिसने बालकों के कल्याण के संवर्धन के लिए उत्कृष्ट कार्य किया हो; और
(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले छह सदस्य, जिनमें से कम से कम दो स्त्रियां होंगी और प्रत्येक निम्नलिखित क्षेत्रों में श्रेष्ठता, योग्यता, सत्यनिष्ठा, प्रतिष्ठा और अनुभव रखने वाला व्यक्ति होगा,
- (i) शिक्षा
- (ii) बाल स्वास्थ्य, देख-रेख कल्याण या बाल विकास;
- (iii) किशोर न्याय या उपेक्षित या तिरस्कृत बालकों या निःशक्त बालकों की देखरेख
- (iv) बालक श्रम या बालकों के कष्टों का आहरण
- (V) बालक मनोविज्ञान या समाजशास्त्र; और
- (vi) बालकों से संबंधित विधियां ।
- v) आयोग का कार्यालय दिल्ली में होगा।
- vi अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति
केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करेगी, परन्तु अध्यक्ष की नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा (महिला और बाल विकास मंत्रालय या विभाग के प्रभारी मंत्री ) की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यों वाली चयन समिति की सफारिश पर की जाएगी।
अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्ते
(1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य उस रूप में उस तारीख से, जिसको वे अपना पदभार ग्रहण करते हैं, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे; परन्तु कोई भी अध्यक्ष या सदस्य दो पदावधियों से अधिक के लिए पद धारण नहीं करेगा; परन्तु यह और कि कोई अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य
- (क) अध्यक्ष की दशा में, पैंसठ वर्ष की आयु ; और
- (ख) सदस्य की दशा में, साठ वर्ष की आयु, प्राप्त होने के पश्चात् उस हैसियत में अपना पद धारण नहीं करेगा।
- (2) अध्यक्ष या सदस्य, केन्द्रीय सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा किसी भी समय अपना पद त्याग सकेगा।
आयोग के कृत्य
(1) आयोग, निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करेगा,
(क) बालक अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रक्षोपायों की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना;
(ख) केन्द्रीय सरकार को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य अंतरालों पर, जिन्हें आयोग उचित समझे, उन रक्षोपायों के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना;
(ग) बालक अधिकारों के अतिक्रमण की जांच करना और ऐसे मामलों में कार्यवाहियां आरंभ करने की सिफारिश करना ;
(घ) उन सभी पहलुओं की परीक्षा करना जो आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा, दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी / एड्स, अवैध व्यापार, दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और शोषण, अश्लील साहित्य और वेश्यावृत्ति से प्रभावित बालक अधिकारों के उपयोग को रोकते हैं और समुचित उपचारी उपायों की सिफारिश करना;
(ङ) उन बालकों से, जिन्हें विशेष देख-रेख और संरक्षण की आवश्कता है. जिनके अंतर्गत कष्टों से पीड़ित बालक, तिरस्कृत और असुविधाग्रस्त बालक, विधि का उल्लंघन करने वाले बालक, किशोर, कुटुम्ब रहित बालक और कैदियों के बालक भी हैं, संबंधित मामलों की जांच पड़ताल करना और उपयुक्त उपचारी उपायों की सिफारिश करना;
(च) बालक अधिकारों से संबंधित संधियों और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय लिखतों का अध्ययन करना और विद्यमान नीतियों, कार्यक्रमों और अन्य क्रियाकलापों का कालिक पुनर्विलोकन करना तथा बालकों के सर्वोत्तम हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करना;
(छ) बालक अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे अग्रसर करना;
(ज) समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बालक अधिकार संबंधी जानकारी का प्रसार करना और प्रकाशनों, मीडिया, विचार गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरुकता का संवर्धन करना;
(झ) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी किशोर अभिरक्षागृह या किसी अन्य निवास स्थान या बालकों के लिए बनाई गई संस्था, जिसके अंतर्गत किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाली संस्था भी है, का निरीक्षण करना या करवाना ; जहां बालकों को उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध किया जाता है या रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना और किसी उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत करना;
- (ञ) निम्नलिखित से संबंधित मामलों के परिवादों की जांच करना और इन मामलों पर स्वप्रेरणा से विचार करना;
- (i) बालक अधिकारों से वंचन और उनका अतिक्रमण;
- (ii) बालकों के संरक्षण और विकास के लिए उपबंध करने वाली विधियों का अक्रियान्वयन;
- (iii) बालकों की कठिनाइयों को दूर करने और बालकों के कल्याण को सुनिश्चित करने तथा ऐसे बालकों को अनुतोष प्रदान करने के उद्देश्य के लिए नीतिगत विनिश्चयों, मार्गदर्शनों या अनुदेशों का अननुपालन; या ऐसे विषयों से उद्भूत मुद्दों पर समुचित पदाधिकारियों के साथ बातचीत करना; और
- (ट) ऐसे अन्य कृत्य करना, जो बालकों के अधिकारों के संवर्धन और उपर्युक्त कृत्यों से आनुषंगिक किसी अन्य मामले के लिए आवश्यक समझे जाएं ।
- (2) आयोग ऐसे किसी मामले की जांच नहीं करेगा जो किसी राज्य आयोग या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक् रूप से गठित किसी अन्य आयोग के समक्ष लंबित है।